भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गरीबा / लाखड़ी पांत / पृष्ठ - 13 / नूतन प्रसाद शर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नूतन प्रसाद शर्मा |संग्रह=गरीबा /...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

15:19, 7 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

“तुम ए गांव के मुखिया मनखे, जग हंसाय बर जोंगत काम
जब तुम गलत राह पर रेंगत, थू थू कर होहव बदनाम।
तुम्मन करव सही अस करनी, दूसर संहरा के जस गांय
तुम मर के परलोक जाव तब, मनसे मन मुड़ धुन पछतांय।”
देखिस भुखू अपन कपड़ा ला, चप चप होत – देत दुर्गंध
कहिथय – “मोर देह बस्सावत, घृणा जनावत अंधनिरंध।
कोन मोर पर गंदलो फेंकिस, काकर अनसम्हार अपराध!
एकर भेद अगर नइ खुलिहय, खूब झोरिहंव खुंटा मं बांध।”
डकहर बोलिस – “हमर दोष नइ, नशा मं तंय खुद करे उछार
हम गवाह के बात मान तंय, करव खलिन्द्री झन सरकार।”
यदपि भुखू ला लाज लगिस – पर ओहर हांसत अइसे।
हार चुनाव ला नेता पहिरत – फूल हार ला जइसे।
भुखू उहां अब काबर बिलमय, लिड़िंग लड़ंग कर चलिस सरेर
जुआ ला हार जुआड़ी भगथय, देख पाय नइ पलट के फेर।
जेन आदमी मिलत तिंकर तिर, भुखू हा मारत अड़बड़ टेस
अपन करे हे निंदित बूता, पर – पर ला देवत उपदेश।
मुंह मं जउन आत फरकावत, समझत स्वयं ला बड़ विद्वान
यदि कोई मनसे हा रोकत, तब ओकर होवत हिनमान।
भुखू ला जाना कहां – कहां गम, बयचकहा अस पांव बढ़ात
हुंकी देवइया एको झन नइ, हरबोलवा अस झुल गोठियात।
भुखू के तिर लइका मन पहुंचिन, रंगी जंगी पुनऊ थुकेल
गज्जू गुन्जा मोंगा तक हें, भुखू ला चिड़हावत हें एल।
गुन्जा कथय – “सयाना हस तंय, तोर चाल हे अनुकरणीय
तब हम तोर राह पर चलबो, तंहने हम कहवाबो नीक।
तंय हा अभी शराब पिये हस, तब हम्मन तक पिये शराब
तोर पांव हा डगमग होवत, लड़खड़ात हे हमरो पांव।”
रंगी किहिस – “मंद पीबो हम, मनसे करंय भले बदनाम
घृणा से देखंय – थू थू बोलंय, करबो इही काम हम नेक।
मंद पिये बर हम नइ छोड़न, भले बिकय घर खेत कोठार
उहू ला पिया देबो दारू, हमर शौक ला झिंकिहय जेन।”
मोंगा किहिस – “पिये हन अमृत, एकर ले बढ़ जथय दिमाग
काम करे के शक्ति बढ़ाथय, मानव के डर – भय हा नाश।
मंय हा आज सत्य बोलत हंव – हे शराब हा गुण के खान
हम हा अभी शराब पिये हन, अउ हम पीयत रबो सदैव।”
सुन्तापुर के लइका मन हा, झुमरत हें लड़भड़ कर गोड़
मंदी मन के नकल उतारत, मुंह तोतरात – किंजारत आंख।
भुखू के बाढ़िस नशा गनागन, क्रोध ला भभका भड़किस जोर-
“तुम्मन काकर टूरा अव रे, काबर इनसठ करथव मोर!
गुरुपढ़ात हवय का अइसन – मुंह मारव बुजरूक के साथ
यदि शिक्षक तुमला भड़काहय, देख सकत मंय ओकरो टेस।”
भुखू अपन नक्सा बचाय बर, लइका मन तन दौड़ लगैस
पर खुद किंजर गिरिस भूमी पर, एकोकन सम्हलन नइ पैस।
जकर बकर देखत अउ सोचत – मनखे झन पहुंचय नजदीक
वरना नंगत फदिहत होहय, फुर्र थूंकिहय मुंह के पीक।
तभे कोन जन एक कुजानिक, मारिस छींक के ऊपर छींक
भुखू के मुड़ पर गाज हा गिरगिस, चंवतरफा टंहकत चकमीक।
भुखू उठिस हड़बड़ कर हुरहा, जकर बकर देखत जस काग
आगू डहर हबाहब रेंगत, शायद पाय ओलहा के पाग!
मुचमुच हंसत गरीबा पूछिस -“तंय कइसे गिर गेस दनाक
भूत उठा के पटक दीस या, ऊंचा कूद लगात भड़ाक?”
बचे नशा हा उड़े चहत अब, सुनिस गरीबा के जब बोल
जइसे ठीक राह पर आथय, मार ला खा के मूरख ढोल।
फट ले भुखू हा ढचरा मारत – “तोर पास आवत धर – काम
तड़ तड़ चलई मं गोड़ छंदा गिस, तंहने मंय गिर गेंव धड़ाम।
धनवा खभर पठोय तोर तिर – मोर साथ कर ले मिल भेंट
ओकर साथ मित्रता बदिहंव, अपन साथ मंय लुहूं समेट।
मंदिर जउन बनावत तेकर, ओकर हाथ होय बस जांच
लगे हाथ मं धर्म कमाहय, लग नइ पाय पाप के आंच।
करय गरीबा हा झन फिक्कर – के आ जाहय खर्च के भार
सब लागत मंय पूरा करिहंव, कतको रूपिया सकत ओनार।”
किहिस गरीबा -“हवय खबर शुभ, पर काबर धनवा नइ अैतस
ओकर ले मंय कहना चाहत – वाकई सुघ्घर उदिम उचैस।
लेकिन जेकर तिर मं घर नइ, ओकर बर मकान बन जाय
जेन पोटपोट भूख मरत हे, बिगर फिक्र जेवन मिल जाय।
जीवन ला आवश्यक होथय, तेन जिनिस के होवय पूर्ति
तब धनवा मंदिर सिरजावय, अउ पधराय सोन के मूर्ति।
मोर बात ला धनवा सुनिहय, ओकर बात लुहूं मंय मान
मेहरुकवि तिर लिखवा देहंव, धनवा के नंगत यशगान।”
एकदम भड़कत भुखू हा बोलिस – “वाकई तंय राक्षस – अवतार
तोर असन के मरना उत्तम, काबर के धरती बर भार।
तब तो तंय हा जन्म लेस तंह उठा के फेंकिन तोला।
दाई के तंय दूध के वंचित – तंय हस पापी चोला।
धर्म विरुद्ध बात हेरत हस, खूब जलत पर के धन देख
तभे तोर तिर मं पूंजी नइ, धनसहाय तिर हवय जतेक।”
कथय गरीबा – “तंय पुण्यात्मा, खुले हृदय ले मानत धर्म
काबर तरहा तरहा के हस, बता भला तंय एकर मर्म?
धरती के सेवा ला करथंय, लहू सुखा हंसिया बनिहार
ओमन काय कुकर्म ला करथंय, जेमां पेट सकंय नइ तार?
असल रहस्य मोर ले सुन तंय – सक्षम धनी करत गुमराह
अपन स्वार्थ ला पूर्ण करे बर, पर ला देथंय गलत सलाह।