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<poem> | <poem> | ||
+ | '''बंगाला पांत''' | ||
+ | पाठक – आलोचक ले मंय हा नमन करत मृदुबानी। | ||
+ | छिंहीबिंही खंड़री निछथंय पर सच मं पीयत मानी। | ||
+ | एमन बुढ़ना ला झर्रा के नाक ला करथंय नक्टा। | ||
+ | तभो ले लेखक नाम कमाथय – नाम हा चढ़थय ऊंचा। | ||
+ | मेहरुकविता लिखत बिधुन मन, ततकी मं मुजरिम मन अै।न | ||
+ | तब बिसना कथय – “तंय कवि अस, कविता लिखथस जन के लाभ। | ||
+ | झूठ बात ला सच बनवाये, करथस घटना के निर्माण | ||
+ | पर अब सच ला साबित कर, निज प्रतिभा के ध्वज कर ठाड़। | ||
+ | घटना – पात्र काल्पनिक खोजत, एमां बुद्धि समय हा ख्वार | ||
+ | तेकल ले तंय हमर बिपत लिख, काव्य वृक्ष पर खातू डार।” | ||
+ | कथय बीरसिंग -”होय हे पेशी, भोला पुलिस झूठ कहि दीस | ||
+ | हमला कड़कड़ ले धंसाय बर, जहर बिखन दिस हमर खिलाफ। | ||
+ | हमर विरुद्ध गवाही देहंय – पल्टन अउ बुलुवा कोतवाल | ||
+ | उंकर मुखारबिन्द का कहिहय, हम नइ जानत ओकर हाल!” | ||
+ | मेहरुबोलिस – “ सुघर कहत हव, हम अन उंचहा साहित्यकार | ||
+ | खोड़रा मं लुकाय रहिथन अउ, लिखथन जमों जगत के हाल। | ||
+ | पर ओ होथय झूठ लबारी, पाठक हा पढ़थय जब लेख | ||
+ | होत दिग्भ्रमित – सच नइ जानय, आखिर पाथय अवगुन हानि। | ||
+ | अब मंय तुम्हर तोलगी ला धर, न्यायालय तक जाहंव आज | ||
+ | सूक्ष्म रुप से अवलोकन कर, काव्य बनांहव खुद के हाथ।” | ||
+ | मेहरुहा मुजरिम संग जावत, सत्य दृष्य देखे बर आज | ||
+ | खैरागढ़ मं पहुंच गीस तंह, टंकक ठेपू संग मं भेट। | ||
+ | मगन तुरुत टंकक ला बोलिस -”हमर तोर पूर्व के पहचान | ||
+ | हवालात मं साथ खटे हन, कर तो भला हमर तंय याद! | ||
+ | मारपीट कर जुरुम करे हस, ओकर पेशी हे दिन कोन | ||
+ | लगे तोर पर के ठक धारा, तोर विरुद्ध गवाह हे कोन?” | ||
+ | टंकक हंसिस – “बता डारे हंव – थानेदार हा परिचित मोर | ||
+ | ओहर कृपा करिस मोर ऊपर, हवालात ले करिस अजाद। | ||
+ | कहां के दण्ड – कहां के धारा, होगिस खतम जतिक आरोप | ||
+ | अब मंय कहां तुम्हर अस मुजरिम, छेल्ला किंजरत हंव हर चौक।” | ||
+ | घुरुवा हा ठेपू ला बोलिस – “बेचन ला गुचकेला देस | ||
+ | अपन जुरुम ला स्वीकारत हस, तब ले तंय बच गेस बेदाग। | ||
+ | हम भोला ला छुए घलो नइ, तब ले हमर मुड़ी पर गाज | ||
+ | न्यायालय मं खात घसीटा, एहर आय कहां के न्याय!” | ||
+ | ओतन पल्टन अउ बुलुवा ला, भोला अपन पास बलवैस | ||
+ | अउ पल्टन ला उभरावत हे -”जानत हवस साफ सब गोठ। | ||
+ | तोर गांव मंय गेंव तोर सुन, तब हे तोरेच पर विश्वास | ||
+ | मोरेच तन बयान तंय देबे, ताकि विरोधी हा फंस जाय। | ||
+ | यदि घुरुवा के मदद ला करबे, न्यायालय मं उनकर जीत | ||
+ | तंहने मोर मुड़ी पर आफत, मोर जीविका जाहय छूट।” | ||
+ | पल्टन कथय -”करव झन चिंता, भेखदास हा दुश्मन मोर | ||
+ | ओकर पक्ष लेत घुरुवा हा, तब ए बड़का दुश्मन मोर। | ||
+ | गांव के आपुस झगरा ला मंय, न्यायालय मं कहिहंव शोध | ||
+ | जब एमन फंस दण्डित होहंय, तभे मोर आत्मा हा जूड़।” | ||
+ | भोला ला बुलुवा ला धांसत -”काम करत हस हमर विभाग | ||
+ | झूठ साक्ष्य देबे तंय रच पच, मुजरिम झन बोचकंय बेदाग।” | ||
+ | बुलुवा किहिस – “याद हे अब तक, जब मंय बनेंव गांव – कोतवाल | ||
+ | मोर विरुद्ध चलिस बुलुवा हा, ओकर बदला लुहूं निकाल।” | ||
+ | आरक्षक हा फेर पूछथय -”एक बात के उत्तर लान – | ||
+ | हमर विरुद्ध कोन हे साक्षी, घुरुवा मन के कोन गवाह?” | ||
+ | बुलुवा कथय -”नाम ला सुन लव – बल्ला अउ मालिक हे नाम | ||
+ | ओमन न्यायालय मं आहंय, घुरुवा मन के लेहंय पक्ष। | ||
+ | साक्षी दिहीं निघरघट अस बन – घुरुवा मन बिल्कुल निर्दाेष | ||
+ | ओमन भोला ला नइ मारिन, भोला खुद बोलत हे झूठ।” | ||
+ | भोला गरजिस -”कान खोल सुन – बन्दबोड़ हा तुम्हर निवास | ||
+ | उंहचे रहिथंय बल्ला मालिक, तब हे तुम्हर सदा मिलजोल। | ||
+ | तुम ओमन ला साफ बताना – थाना पुलिस के शक्ति अपार | ||
+ | ओकर साथ कभू झन उलझव, वरना बहुत गलत परिणाम – | ||
+ | उनकर पर आरोप झूठ मढ़, फंसा सकत प्रकरण गंभीर | ||
+ | घुरुवा मन के दुर्गति होवत, उही रिकम के उंकरो हाल। | ||
+ | यदि ओमन हा चहत सुरक्षा, न्यायालय झन आवंय भूल | ||
+ | बन्दबोड़ मं रहंय कलेचुप, पर हित के रस्ता ला छोड़।” | ||
+ | न्यायालय के टेम अैेस तंह, सब कोई न्यायालय गीन | ||
+ | मुंशी अधिवक्ता साक्षी मन, पहुंचिन लकर धकर धर रेम। | ||
+ | मोतिम न्यायाधीष अै स अउ, कुर्सी पर बइठिस बिन बेर | ||
+ | पिंजरा अस कटघरा बने हे, ओमां मुजरिम मन हें ठाड़। | ||
+ | दूसर तन कटघरा तउन मं, पल्टन अउ बुलुवा कोतवाल | ||
+ | एमन करत विचार अपन मन – हमला करिहंय काय सवाल! | ||
+ | शासन के अभिभाषक कण्टक, ओहर इंकर पास मं अैठस | ||
+ | कहिथय -”तुम्मन गांव मं रहिथव, तुम निष्कपट सरल इंसान। | ||
+ | लंदफंद ले घृणा करत हव, तब तुम पर हे बहुत यकीन | ||
+ | तुम्मन सत्य गवाही देहव, एको कनिक कहव नइ झूठ – | ||
+ | भोला तुम्हर गांव मं पहुंचिस, संग मं धर शासन के काम | ||
+ | तब मुजरिम मन एकर संग मं, जबरन झगरा ला कर दीन। | ||
+ | आरक्षक ला दोंह दोंह कुचरिन, ढेंकी मं कूटत जस धान | ||
+ | अपराधी मन धमकी देइन – हम लेबो तोर जीयत जान। | ||
+ | घटना होइस तेन ला टकटक, देखे हवय तुम्हर खुद नैन | ||
+ | बीच बचाव करेव तुम्मन तब, मुजरिम तुमला भी रचकैन?” | ||
+ | पल्टन बुलुवा झप स्वीकारिन – “तंय हेरे हस सत्य जबान | ||
+ | बिल्कुल साफ बात होइस हे, सच मं उथय सुरुज भगवान।” | ||
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15:56, 7 जनवरी 2017 का अवतरण
बंगाला पांत
पाठक – आलोचक ले मंय हा नमन करत मृदुबानी।
छिंहीबिंही खंड़री निछथंय पर सच मं पीयत मानी।
एमन बुढ़ना ला झर्रा के नाक ला करथंय नक्टा।
तभो ले लेखक नाम कमाथय – नाम हा चढ़थय ऊंचा।
मेहरुकविता लिखत बिधुन मन, ततकी मं मुजरिम मन अै।न
तब बिसना कथय – “तंय कवि अस, कविता लिखथस जन के लाभ।
झूठ बात ला सच बनवाये, करथस घटना के निर्माण
पर अब सच ला साबित कर, निज प्रतिभा के ध्वज कर ठाड़।
घटना – पात्र काल्पनिक खोजत, एमां बुद्धि समय हा ख्वार
तेकल ले तंय हमर बिपत लिख, काव्य वृक्ष पर खातू डार।”
कथय बीरसिंग -”होय हे पेशी, भोला पुलिस झूठ कहि दीस
हमला कड़कड़ ले धंसाय बर, जहर बिखन दिस हमर खिलाफ।
हमर विरुद्ध गवाही देहंय – पल्टन अउ बुलुवा कोतवाल
उंकर मुखारबिन्द का कहिहय, हम नइ जानत ओकर हाल!”
मेहरुबोलिस – “ सुघर कहत हव, हम अन उंचहा साहित्यकार
खोड़रा मं लुकाय रहिथन अउ, लिखथन जमों जगत के हाल।
पर ओ होथय झूठ लबारी, पाठक हा पढ़थय जब लेख
होत दिग्भ्रमित – सच नइ जानय, आखिर पाथय अवगुन हानि।
अब मंय तुम्हर तोलगी ला धर, न्यायालय तक जाहंव आज
सूक्ष्म रुप से अवलोकन कर, काव्य बनांहव खुद के हाथ।”
मेहरुहा मुजरिम संग जावत, सत्य दृष्य देखे बर आज
खैरागढ़ मं पहुंच गीस तंह, टंकक ठेपू संग मं भेट।
मगन तुरुत टंकक ला बोलिस -”हमर तोर पूर्व के पहचान
हवालात मं साथ खटे हन, कर तो भला हमर तंय याद!
मारपीट कर जुरुम करे हस, ओकर पेशी हे दिन कोन
लगे तोर पर के ठक धारा, तोर विरुद्ध गवाह हे कोन?”
टंकक हंसिस – “बता डारे हंव – थानेदार हा परिचित मोर
ओहर कृपा करिस मोर ऊपर, हवालात ले करिस अजाद।
कहां के दण्ड – कहां के धारा, होगिस खतम जतिक आरोप
अब मंय कहां तुम्हर अस मुजरिम, छेल्ला किंजरत हंव हर चौक।”
घुरुवा हा ठेपू ला बोलिस – “बेचन ला गुचकेला देस
अपन जुरुम ला स्वीकारत हस, तब ले तंय बच गेस बेदाग।
हम भोला ला छुए घलो नइ, तब ले हमर मुड़ी पर गाज
न्यायालय मं खात घसीटा, एहर आय कहां के न्याय!”
ओतन पल्टन अउ बुलुवा ला, भोला अपन पास बलवैस
अउ पल्टन ला उभरावत हे -”जानत हवस साफ सब गोठ।
तोर गांव मंय गेंव तोर सुन, तब हे तोरेच पर विश्वास
मोरेच तन बयान तंय देबे, ताकि विरोधी हा फंस जाय।
यदि घुरुवा के मदद ला करबे, न्यायालय मं उनकर जीत
तंहने मोर मुड़ी पर आफत, मोर जीविका जाहय छूट।”
पल्टन कथय -”करव झन चिंता, भेखदास हा दुश्मन मोर
ओकर पक्ष लेत घुरुवा हा, तब ए बड़का दुश्मन मोर।
गांव के आपुस झगरा ला मंय, न्यायालय मं कहिहंव शोध
जब एमन फंस दण्डित होहंय, तभे मोर आत्मा हा जूड़।”
भोला ला बुलुवा ला धांसत -”काम करत हस हमर विभाग
झूठ साक्ष्य देबे तंय रच पच, मुजरिम झन बोचकंय बेदाग।”
बुलुवा किहिस – “याद हे अब तक, जब मंय बनेंव गांव – कोतवाल
मोर विरुद्ध चलिस बुलुवा हा, ओकर बदला लुहूं निकाल।”
आरक्षक हा फेर पूछथय -”एक बात के उत्तर लान –
हमर विरुद्ध कोन हे साक्षी, घुरुवा मन के कोन गवाह?”
बुलुवा कथय -”नाम ला सुन लव – बल्ला अउ मालिक हे नाम
ओमन न्यायालय मं आहंय, घुरुवा मन के लेहंय पक्ष।
साक्षी दिहीं निघरघट अस बन – घुरुवा मन बिल्कुल निर्दाेष
ओमन भोला ला नइ मारिन, भोला खुद बोलत हे झूठ।”
भोला गरजिस -”कान खोल सुन – बन्दबोड़ हा तुम्हर निवास
उंहचे रहिथंय बल्ला मालिक, तब हे तुम्हर सदा मिलजोल।
तुम ओमन ला साफ बताना – थाना पुलिस के शक्ति अपार
ओकर साथ कभू झन उलझव, वरना बहुत गलत परिणाम –
उनकर पर आरोप झूठ मढ़, फंसा सकत प्रकरण गंभीर
घुरुवा मन के दुर्गति होवत, उही रिकम के उंकरो हाल।
यदि ओमन हा चहत सुरक्षा, न्यायालय झन आवंय भूल
बन्दबोड़ मं रहंय कलेचुप, पर हित के रस्ता ला छोड़।”
न्यायालय के टेम अैेस तंह, सब कोई न्यायालय गीन
मुंशी अधिवक्ता साक्षी मन, पहुंचिन लकर धकर धर रेम।
मोतिम न्यायाधीष अै स अउ, कुर्सी पर बइठिस बिन बेर
पिंजरा अस कटघरा बने हे, ओमां मुजरिम मन हें ठाड़।
दूसर तन कटघरा तउन मं, पल्टन अउ बुलुवा कोतवाल
एमन करत विचार अपन मन – हमला करिहंय काय सवाल!
शासन के अभिभाषक कण्टक, ओहर इंकर पास मं अैठस
कहिथय -”तुम्मन गांव मं रहिथव, तुम निष्कपट सरल इंसान।
लंदफंद ले घृणा करत हव, तब तुम पर हे बहुत यकीन
तुम्मन सत्य गवाही देहव, एको कनिक कहव नइ झूठ –
भोला तुम्हर गांव मं पहुंचिस, संग मं धर शासन के काम
तब मुजरिम मन एकर संग मं, जबरन झगरा ला कर दीन।
आरक्षक ला दोंह दोंह कुचरिन, ढेंकी मं कूटत जस धान
अपराधी मन धमकी देइन – हम लेबो तोर जीयत जान।
घटना होइस तेन ला टकटक, देखे हवय तुम्हर खुद नैन
बीच बचाव करेव तुम्मन तब, मुजरिम तुमला भी रचकैन?”
पल्टन बुलुवा झप स्वीकारिन – “तंय हेरे हस सत्य जबान
बिल्कुल साफ बात होइस हे, सच मं उथय सुरुज भगवान।”