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"गरीबा / बंगाला पांत / पृष्ठ - 2 / नूतन प्रसाद शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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ओमन ला छुट्टी मिल गिस तंह, लकर धकर बाहिर मं अैपन
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पल्टन हा बुलुवा ला बोलिस – “हमर आज माछी अस हाल।
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माछी खोजत रथय घाव ला, अमरा के पावत संतोष
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हम्मन मन माफिक अमरे हन, विजयी होय बड़े जक होड़।
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विस्तृत तर्क हमर तिर नइये, मुंह हा देतिस गलत निकाल
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मगर हमर बूड़त डोंगा ला, खुद कण्टक हा लीस सम्हाल।”
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न्यायालय मं रुके हे मेहरु, उहां के जांचत हे सच हाल
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सुने रिहिस जे तथ्य पूर्व मं, सच उतरत हे आधच गोठ।
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मेहरुपहुंचिस अजम के तिर मं, मुजरिम मन के इही वकील
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मेहरुकिहिस – “सुनत आवत हन, तेन बात पर ठुंक गिस कील।
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जब गवाह मन हाजिर होइन, गीता के किरिया नइ खैन
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ना “मी लार्ड’ किहिन अधिवक्ता, अउ ना बोम फार चिल्लैन।
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अनुभव होवत हवय जेन अभि पहिली कहां उवाटी।
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लुलसा ला चढ़ जथय चेत जब परत कोड़ना माटी।
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अजम हा मुच मुच मुसका बोलिस -”अइसन दृष्य फिल्म के आय
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दर्शक हा आकर्षित होथय, तब निर्माता झोरत नोट।
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मगर इहां के कथा अउर कुछ – इहां होत कारज गंभीर
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प्रकरण ला सुलझाय सोझ बर, तर्क रखत हें सोच विचार।
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न्यायाधीष के बदली होथय, तब आथय नव न्यायाधीष
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एकर बारे प्रश्न उछलथय – कोन किसम हे एकर न्याय!
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सुनत निवेदन या दुत्कारत, शांति बुद्धि या उग्र स्वभाव
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अक्सर कड़ा दण्ड ला देथय, या फिर दोष ले करत अजाद?
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एकर अर्थ जान अब अइसन – न्यायाधीष पर हे सब न्याय
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मुजरिम ला बेदाग छोड़ दे, या दे सकत दण्ड ला धांय।
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पर अइसन कभुकाल मं होथय, अक्सर होत तउन ला जान –
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धारा साक्ष्य नियम अउ स्थिति, निर्णय देत इहिच अनुसार।
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हमर बिखेद ला घलो सुनव तुम – हम वकील मन हन बदनाम –
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पक्षकार ले रुपिया खाथंय, देखत रथंय स्वयंके स्वार्थ।
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सच मं हम वकील मन स्वार्थी, एकर साथ एदे अउ गोठ –
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पक्षकार हा जीत जाय कहि, हम्मन करथन अथक प्रयास।
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पक्षकार यदि विजयी होवत, हम्मन खुशी होत भरपूर
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अगर हार जावत हे ओहर, तब हम होवत मरे समान।”
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मुजरिम मन ला अजम हा बोलिस – “अब जब तुम न्यायालय आव
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धीर बुद्धि निर्भीक निघरघट, तइसन साक्षी धर के लाव।
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कण्टक अभिभाषक हा ओला, अटपट पूछ डिगाहय राह
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ओकर सम्मुख जउन हा ठहरय, ओला लान लगा के थाह।”
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तब घुरुवा हा अजम ला बोलिस – “हमर गवाह हवंय हुसियार
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उंकर नाम बल्ला अउ मालिक, ओमन कभू खांय नइ हार।”
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अजम वकील ओ तिर ला छोड़िस, इंकर पास खेदू हा अै स
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ओहर हा निÏश्चत लगत अउ, मुंह के रंगत चमकत तेज।
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खेदू ला बीरसिंग हा बोलिस – “तंय हस खूब निघरघट जीव
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तोर विरुद्ध चलत हे प्रकरण, तब ले बघवा असन निफिक्र।
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लगथय – तोर हाथ मं निर्णय, न्याय के दिश ला सकत किंजार
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तोर विजय जब ध्रुव अस निश्चित, फोर भला तंय एकर भेद?”
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खेदू एल्हिस -”तुम देहाती, जानव नइ अंदर के पोल
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श्रम ला बजा अन्न उपजाथव, पर नइ पाव उचित खाद्यान्न।
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शासन हा इनाम कई बांटत – भारत रत्न शिखर सम्मान
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पर ग्रामीण के हाथ हा रीता, भाग गे मछरी जांग समान।
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देश विदेश उच्च पद कतको, अधिकारी के पद ला पात
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मगर गांव के शिक्षित मन हा, कहां उच्च पद पावत झींक!
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देश के भक्त – समाज के सेवक, गांव मं होवत कई इंसान
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पर ओमन विख्यात होंय नइ, डूब जात उनकर यश नाम।”
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खेदू हा नंगत झोरिया दिस, लागिस बात हा जहर समान
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मगर सत्य ला कोन हा काटय, सच के सदा मान सम्मान।
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खेदू हा फिर बात बढ़ाइस -”पूछत हव प्रकरण ला मोर
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मोला जेन पलोंदी देवत, शासन पर हे ओकर धाक।
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हांका पार कहत हंव मंय हा – निर्णय मं होहंव निर्दाेष
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पर एकर बर समय मंगत हंव, तंहने पूर्ण जनार्दन गोठ।
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छेरकू मंत्री जउन हा धारन, गुप्त रखत हंव ओकर नाम
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खभर समान्य होत जग जहरित, लेकिन छुपत खभर संगीन।”
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खेदू हंसत उहां ले हटथय, तभे बहल कवि ओ तिर अैमस
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बोलिस – “हम ग्रामीण दुनों झन, तंय कवि अस – मंय तक कवि आंव।
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रहन सहन अउ काम एक अस, तब मंय करत तोर पर आस
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मुड़ी मिला के बात करन अउ, मन के भेद ला बाहिर लान।”
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मेहरुमुसका प्रश्न उछालिस – “तोर बात के अंदर राज
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खभर विशेष लुका राखे हस, हां अब बता हृदय के बात?”
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बोलिस बहल -”जान ले तंय हा – इहां विश्वविद्यालय खास
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उहां बहुत झन लेखक आहंय, लेखक सम्मेलन हे खास।
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आत रायगढ़ ले छन्नू हा, बिलासपुर के आत बिटान
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आत रायपुर ले दानी हा, जगदलपुर ले सातो आत।
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आत अम्बिकापुर ले मिलापा, दुर्ग ले परसादी हा आत
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नंदगंइहा बइसाखू आवत, सन्तू ढेला तंय मंय और।
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महासचिव – अध्यक्ष चुने बर, लेखक संघ के बीच चुनाव
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हम तुम घलो उदीम उचाबो, ताकि पान हम पद एकाध।”
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मेहरुकथय -”ठीक बोलत हंस, अब तंय बता स्वयं के हाल
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रचना काम चलत हे बढ़िया, सरलग चलत लेख के काम?
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“हव मंय लेख चलावत सरलग, एकर संग अउ एक विचार –
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मंय हा शहर रायपुर जावंव, उहां करंव साहित्य के काम।
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आकाशवाणी अउ दूरदर्शन, दुनों केन्द्र मं हाजिर होंव
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रचना ला प्रमाण मं राखंव, सब कोती करवांव प्रचार।”
 
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15:57, 7 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

ओमन ला छुट्टी मिल गिस तंह, लकर धकर बाहिर मं अैपन
पल्टन हा बुलुवा ला बोलिस – “हमर आज माछी अस हाल।
माछी खोजत रथय घाव ला, अमरा के पावत संतोष
हम्मन मन माफिक अमरे हन, विजयी होय बड़े जक होड़।
विस्तृत तर्क हमर तिर नइये, मुंह हा देतिस गलत निकाल
मगर हमर बूड़त डोंगा ला, खुद कण्टक हा लीस सम्हाल।”
न्यायालय मं रुके हे मेहरु, उहां के जांचत हे सच हाल
सुने रिहिस जे तथ्य पूर्व मं, सच उतरत हे आधच गोठ।
मेहरुपहुंचिस अजम के तिर मं, मुजरिम मन के इही वकील
मेहरुकिहिस – “सुनत आवत हन, तेन बात पर ठुंक गिस कील।
जब गवाह मन हाजिर होइन, गीता के किरिया नइ खैन
ना “मी लार्ड’ किहिन अधिवक्ता, अउ ना बोम फार चिल्लैन।
अनुभव होवत हवय जेन अभि पहिली कहां उवाटी।
लुलसा ला चढ़ जथय चेत जब परत कोड़ना माटी।
अजम हा मुच मुच मुसका बोलिस -”अइसन दृष्य फिल्म के आय
दर्शक हा आकर्षित होथय, तब निर्माता झोरत नोट।
मगर इहां के कथा अउर कुछ – इहां होत कारज गंभीर
प्रकरण ला सुलझाय सोझ बर, तर्क रखत हें सोच विचार।
न्यायाधीष के बदली होथय, तब आथय नव न्यायाधीष
एकर बारे प्रश्न उछलथय – कोन किसम हे एकर न्याय!
सुनत निवेदन या दुत्कारत, शांति बुद्धि या उग्र स्वभाव
अक्सर कड़ा दण्ड ला देथय, या फिर दोष ले करत अजाद?
एकर अर्थ जान अब अइसन – न्यायाधीष पर हे सब न्याय
मुजरिम ला बेदाग छोड़ दे, या दे सकत दण्ड ला धांय।
पर अइसन कभुकाल मं होथय, अक्सर होत तउन ला जान –
धारा साक्ष्य नियम अउ स्थिति, निर्णय देत इहिच अनुसार।
हमर बिखेद ला घलो सुनव तुम – हम वकील मन हन बदनाम –
पक्षकार ले रुपिया खाथंय, देखत रथंय स्वयंके स्वार्थ।
सच मं हम वकील मन स्वार्थी, एकर साथ एदे अउ गोठ –
पक्षकार हा जीत जाय कहि, हम्मन करथन अथक प्रयास।
पक्षकार यदि विजयी होवत, हम्मन खुशी होत भरपूर
अगर हार जावत हे ओहर, तब हम होवत मरे समान।”
मुजरिम मन ला अजम हा बोलिस – “अब जब तुम न्यायालय आव
धीर बुद्धि निर्भीक निघरघट, तइसन साक्षी धर के लाव।
कण्टक अभिभाषक हा ओला, अटपट पूछ डिगाहय राह
ओकर सम्मुख जउन हा ठहरय, ओला लान लगा के थाह।”
तब घुरुवा हा अजम ला बोलिस – “हमर गवाह हवंय हुसियार
उंकर नाम बल्ला अउ मालिक, ओमन कभू खांय नइ हार।”
अजम वकील ओ तिर ला छोड़िस, इंकर पास खेदू हा अै स
ओहर हा निÏश्चत लगत अउ, मुंह के रंगत चमकत तेज।
खेदू ला बीरसिंग हा बोलिस – “तंय हस खूब निघरघट जीव
तोर विरुद्ध चलत हे प्रकरण, तब ले बघवा असन निफिक्र।
लगथय – तोर हाथ मं निर्णय, न्याय के दिश ला सकत किंजार
तोर विजय जब ध्रुव अस निश्चित, फोर भला तंय एकर भेद?”
खेदू एल्हिस -”तुम देहाती, जानव नइ अंदर के पोल
श्रम ला बजा अन्न उपजाथव, पर नइ पाव उचित खाद्यान्न।
शासन हा इनाम कई बांटत – भारत रत्न शिखर सम्मान
पर ग्रामीण के हाथ हा रीता, भाग गे मछरी जांग समान।
देश विदेश उच्च पद कतको, अधिकारी के पद ला पात
मगर गांव के शिक्षित मन हा, कहां उच्च पद पावत झींक!
देश के भक्त – समाज के सेवक, गांव मं होवत कई इंसान
पर ओमन विख्यात होंय नइ, डूब जात उनकर यश नाम।”
खेदू हा नंगत झोरिया दिस, लागिस बात हा जहर समान
मगर सत्य ला कोन हा काटय, सच के सदा मान सम्मान।
खेदू हा फिर बात बढ़ाइस -”पूछत हव प्रकरण ला मोर
मोला जेन पलोंदी देवत, शासन पर हे ओकर धाक।
हांका पार कहत हंव मंय हा – निर्णय मं होहंव निर्दाेष
पर एकर बर समय मंगत हंव, तंहने पूर्ण जनार्दन गोठ।
छेरकू मंत्री जउन हा धारन, गुप्त रखत हंव ओकर नाम
खभर समान्य होत जग जहरित, लेकिन छुपत खभर संगीन।”
खेदू हंसत उहां ले हटथय, तभे बहल कवि ओ तिर अैमस
बोलिस – “हम ग्रामीण दुनों झन, तंय कवि अस – मंय तक कवि आंव।
रहन सहन अउ काम एक अस, तब मंय करत तोर पर आस
मुड़ी मिला के बात करन अउ, मन के भेद ला बाहिर लान।”
मेहरुमुसका प्रश्न उछालिस – “तोर बात के अंदर राज
खभर विशेष लुका राखे हस, हां अब बता हृदय के बात?”
बोलिस बहल -”जान ले तंय हा – इहां विश्वविद्यालय खास
उहां बहुत झन लेखक आहंय, लेखक सम्मेलन हे खास।
आत रायगढ़ ले छन्नू हा, बिलासपुर के आत बिटान
आत रायपुर ले दानी हा, जगदलपुर ले सातो आत।
आत अम्बिकापुर ले मिलापा, दुर्ग ले परसादी हा आत
नंदगंइहा बइसाखू आवत, सन्तू ढेला तंय मंय और।
महासचिव – अध्यक्ष चुने बर, लेखक संघ के बीच चुनाव
हम तुम घलो उदीम उचाबो, ताकि पान हम पद एकाध।”
मेहरुकथय -”ठीक बोलत हंस, अब तंय बता स्वयं के हाल
रचना काम चलत हे बढ़िया, सरलग चलत लेख के काम?
“हव मंय लेख चलावत सरलग, एकर संग अउ एक विचार –
मंय हा शहर रायपुर जावंव, उहां करंव साहित्य के काम।
आकाशवाणी अउ दूरदर्शन, दुनों केन्द्र मं हाजिर होंव
रचना ला प्रमाण मं राखंव, सब कोती करवांव प्रचार।”