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"गरीबा / बंगाला पांत / पृष्ठ - 4 / नूतन प्रसाद शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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अमरउती हा बंद करिस जब खुद के बिपत कहानी।
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मेहरु- जइतू अउर गरीबा पहुंचिन तीनों प्राणी।
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अमरउती इनकर बइठेबर, सरकी लानिस तेन तुनाय
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बहुत अधीनी ले दिन काटत, काकर तिर जा बिपत सुनाय!
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अमरउती के पति भारत हा, अपन देश बर जीवन दीस
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मगर देशवासी मन स्वार्थी, छूटत कहां फर्ज के कर्ज!
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“छत्तीसगढ़ी सरल मिट्टी अस, जउन करिस हे क्षेत्र विकास
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पर छत्तीसगढ़िया मन हा भिड़, करत हइन्ता बीच बजार।
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छत्तीसगढ़ी दीन कंगलिन अस, ओकर सदा होत हिनमान
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“भाषा आय’ अगर बोलत, मुंह ला दबा – दबात अवाज।’
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जेन मिलत अमरउती जेवत, सरफा परत बचे बर जीव
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बसत गरीबी गाड़ के खमिहा, निर्बल के सुर्हरावत जीब।
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तीनों झन सरकी पर बइठिन, मन मं नइ लाइन कुछ भेव
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चिखला मं सनाय रहिथय पर, छिनमिन कहां करत हे नेव!
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जइतू किहिस – “तोर भाई हम, अब ले तंय झन कर कुछ फिक्र
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जउन बेवस्ता आय तोर पर, हमर पास कर बेझिझक जिक्र।
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भारत रिहिस राष्ट्र के प्रेमी, ओकर अस नइ भारत धाम
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यद्यपि भारत हा जग मं नइ, तभो अमर हे ओकर नाम।
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ओला नता मं भांटो मानों, हमर दुनों मं चलय मजाक
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ओला हार जाय कहि सोचंव, मगर ऊंच तन ओकर नाक।
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मंय बीमार परेंव बेधड़क, भारत जतन करिस दुख झेल
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मोला खूब प्रसन्न रहय कहि, हंसा डरय बिजरा के एल।
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मंय घबरा के अइसे बोलंव – अब नइ बांचय जीवन मोर
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तंय हा मोला छोड़ के भग झन, जलगस नइ पहुंचत समसान।”
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भारत हा मुसकावत बोलय -”अभी प्रसन्न कहां यमराज
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साले, तोला कोन मारिहय, बचे हवय अभि देश के काम।
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अगर कहूं तन जाय के होहय, तब हे मोर प्रथम अधिकार
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सत्य बचन ला जांच देखबे – होवत विजय मोर के तोर?”
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वास्तव मं भारत हा जीतिस, अउ मंय हार गेंव हर शर्त
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ओकर स्मृति सदा सतावत, चुहे धरत आंसू के धार।”
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सबके आंसू छलक बोहावत, आंसू रोक सकिस नइ आंख
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नदिया मं बंधाय बांधा हा, बढ़त पुरा नइ पावय रोक।
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अमरउती हा आंख पोंछतिस, तंहने लुगा चिरा गिस फर्र
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दुब्बर ला परेशान करे बर, दू असाढ़ आ जाथय सर्र।
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मेहरुलुगा लाय बर उठथय, अमरउती हा छेंकिस बीच –
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“भारत हा मोला शिक्षा दिस – कभु झन लेबे पर के चीज।
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जलगस मंय हा जीवित जग मं, पूरा करिहंव तोर सवांग
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अगर युद्ध मं मंय हा चंदन, तब झन तजबे आस कड़ांग।
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अपन जिन्दगी अवस पालबे, महिनत कर – दुख संग कर होड़
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देसू हा जब बाढ़ जहय तंह, पटक दिही सब सुख ला गोड़।”
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देसू नाम सुनिन तीनों झन, जकर बकर देखत सब कोत
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जइसे नाविक बीच सिन्धु मं, खोजत रथय कहां के पोत!
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जइतू अचरत मं भर पूछिस – “कते डहर हे देसू।
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भांचा ला हम चहत देखना – जस फागुन हा टेसू।
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अमरउती हा शर्म मं गड़गे, देखे लगिस स्वयं के पांव
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एमन बिगर बताय समझ गिन, हमर बहिन हे भारी पांव।
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“यदपि जिये के अब लालच नइ, पर ए कारन घसलत – हाय
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देश डहर जे नाम हा जुड़थय, जीयत ओकर फूल बचाय। ”
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मेहरुओला ढाढस बांधिस – “मरना नइ संहराय के काम
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कर संघर्ष जउन ही जीयत, ओकर जगमग होवत नाम।
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लक्ष्मीबाई जिनगी खोतिस, पति चिंता मं चिता मं कूद
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गोर मन संग कोन हा लड़तिस, अजर अमर नइ रहितिस नाम।”
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कथय गरीबा, अमरउती ला – “तंय हा हमर मदद नइ लेत
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तोर पास हे धन के कमती, तब तंय कइसे भरबे पेट?”
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अमरउती बोलिस – “मंय पाहंव, शासन ले अड़बड़ अक नोट
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जीवन अपन चलाहंव सुदृढ़, देसू बर रख लुहूं रपोट।”
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मेहरुकिहिस – “वाह रे शासन, तंय देथस आश्वासन मात्र
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मरन देस ना देस मोटावन, जीवित के करथस दशगात्र।”
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कथय गरीबा हा जइतू ला – “तंय हा बता एक ठन भेद
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जे सैनिक शहीद हो जाथय, ओकर रथय वंश परिवार।
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ओकर मदद करत शासन हा, ताकि अभाव कष्ट हो दूर
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अमरउती कब सुविधा पाहय, पेंशन भूमि नगद मं नोट?”
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जइतू कथय -”साफ फोरत हंव – शासन मंगत अचूक प्रमाण
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यदि सैनिक के मृत्यु होय हे, मिलना चहिये ओकर लाश।
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पर भारत के जटिल हे प्रकरण, हम जानत हन वाजिब गोठ
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भारत हा दुश्मन ला मारिस, ओकर संग खुद होय शहीद।
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पर भारत के लाश मिलिस नइ, तब शासन दुविधा के बीच
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भारत ला “फरार’ मानत अउ, मदद करे बर हे असमर्थ।
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अमरउती ला मदद मिलय नइ, ना भुंइया ना धन के लाभ
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हम ओला ढाढस हे सकथन, एकर सिवा शक्ति नइ और।”
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अमरउती ला दिन सम्बोधन, तीनों झन अब गोड़ हटात
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“भाई मन बिन खाय लहुट गिन’ इही सोच बहिनी पछतात।
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तीनों झन पाछू नइ देखिन, रेंगिन चुप – पटके बिन पांव
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पर जब जानिन – दिदी हिम्मती, गरब साथ देखिन कई घांव।
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एमन आगू कोती रेंगिन, जहां पुसऊ के घर तिर गीन
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टीकम चम्पी देवलू बोंगडू, खिघू आदि के लगे हे भीड़।
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पुसऊ हा रोवत मुड़ ला पटकत, अपन प्राण तक के सुध खोय
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देवलू पूछिस -”काबर कलपत, आय तोर पर का तकलीफ?”
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मन सम्बोधिस तहां पुसऊ हा, खोले बर लग जथय बिखेद –
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“जान लेंव मंय कतका होथय, पुंजलग अउ कंगला मं भेद!
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मंय हा करों घमंड उठा मुड़ – असरुहवय अचक धनवान
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ओला मंय समधी बनाय हंव, यने उठेहंव मंय खुद ऊंच।
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पर अब वाजिब पता चलिस हे – अपन बेवस्ता फोरत साफ –
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मोर दुलौरिन अस धरमिन हा, नइ जीयत हे ए संसार।
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हत्यारा फंकट अउ असरु, मोर टुरी के जीवन लीन
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दाइज के दानव आखिर मं, धरमिन ला खुद के चइ लीस।”
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मनसे मन कारण जानिस तंह, कोइला अस मुंह करिया गीस
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जइसे घटके गंहुवारी ला, कुहकुह पाला हा झड़कैस।
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टीकम टांचिस तुरुत पुसऊ ला -”अचरज होत बात सुन तोर
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तंय पतियाय के लाइक गोठिया, हमला काबर करत अवाक!
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धरमिन आय तोर सग पुत्री, तब ले मांगत ओकर मौत
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लगथय -”तंय पगला होगे हस, काम करत नइ तोर दिमाग?”
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पुसऊ किहिस -”मंय हा नइ पगला, जउन बताय जमों सच आय
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यदि विश्वास मोर ऊपर नइ, पता करव जा छुईखदान।
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असली मं मंय समझ पाय नइ, धरमबती के भाषा व्यंग्य
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मंय भुलाय रेहेंव गुमान मं – समधी पाय धनी अड़जंग।
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मोर मया हा जहां बीत गिस, पहुंच गेंव खट छुईखदान
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असरुके व्यवहार देख के, मोर प्रान हा सुखगे ठाड़।
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मोर बिगर ओंमन हा दे दिन, मोर मया धरमिन ला दाग
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मुख दरसन तक मिल नइ पाइस, तब लगगे तन बदन मं आग।
 
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15:59, 7 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

अमरउती हा बंद करिस जब खुद के बिपत कहानी।
मेहरु- जइतू अउर गरीबा पहुंचिन तीनों प्राणी।
अमरउती इनकर बइठेबर, सरकी लानिस तेन तुनाय
बहुत अधीनी ले दिन काटत, काकर तिर जा बिपत सुनाय!
अमरउती के पति भारत हा, अपन देश बर जीवन दीस
मगर देशवासी मन स्वार्थी, छूटत कहां फर्ज के कर्ज!
“छत्तीसगढ़ी सरल मिट्टी अस, जउन करिस हे क्षेत्र विकास
पर छत्तीसगढ़िया मन हा भिड़, करत हइन्ता बीच बजार।
छत्तीसगढ़ी दीन कंगलिन अस, ओकर सदा होत हिनमान
“भाषा आय’ अगर बोलत, मुंह ला दबा – दबात अवाज।’
जेन मिलत अमरउती जेवत, सरफा परत बचे बर जीव
बसत गरीबी गाड़ के खमिहा, निर्बल के सुर्हरावत जीब।
तीनों झन सरकी पर बइठिन, मन मं नइ लाइन कुछ भेव
चिखला मं सनाय रहिथय पर, छिनमिन कहां करत हे नेव!
जइतू किहिस – “तोर भाई हम, अब ले तंय झन कर कुछ फिक्र
जउन बेवस्ता आय तोर पर, हमर पास कर बेझिझक जिक्र।
भारत रिहिस राष्ट्र के प्रेमी, ओकर अस नइ भारत धाम
यद्यपि भारत हा जग मं नइ, तभो अमर हे ओकर नाम।
ओला नता मं भांटो मानों, हमर दुनों मं चलय मजाक
ओला हार जाय कहि सोचंव, मगर ऊंच तन ओकर नाक।
मंय बीमार परेंव बेधड़क, भारत जतन करिस दुख झेल
मोला खूब प्रसन्न रहय कहि, हंसा डरय बिजरा के एल।
मंय घबरा के अइसे बोलंव – अब नइ बांचय जीवन मोर
तंय हा मोला छोड़ के भग झन, जलगस नइ पहुंचत समसान।”
भारत हा मुसकावत बोलय -”अभी प्रसन्न कहां यमराज
साले, तोला कोन मारिहय, बचे हवय अभि देश के काम।
अगर कहूं तन जाय के होहय, तब हे मोर प्रथम अधिकार
सत्य बचन ला जांच देखबे – होवत विजय मोर के तोर?”
वास्तव मं भारत हा जीतिस, अउ मंय हार गेंव हर शर्त
ओकर स्मृति सदा सतावत, चुहे धरत आंसू के धार।”
सबके आंसू छलक बोहावत, आंसू रोक सकिस नइ आंख
नदिया मं बंधाय बांधा हा, बढ़त पुरा नइ पावय रोक।
अमरउती हा आंख पोंछतिस, तंहने लुगा चिरा गिस फर्र
दुब्बर ला परेशान करे बर, दू असाढ़ आ जाथय सर्र।
मेहरुलुगा लाय बर उठथय, अमरउती हा छेंकिस बीच –
“भारत हा मोला शिक्षा दिस – कभु झन लेबे पर के चीज।
जलगस मंय हा जीवित जग मं, पूरा करिहंव तोर सवांग
अगर युद्ध मं मंय हा चंदन, तब झन तजबे आस कड़ांग।
अपन जिन्दगी अवस पालबे, महिनत कर – दुख संग कर होड़
देसू हा जब बाढ़ जहय तंह, पटक दिही सब सुख ला गोड़।”
देसू नाम सुनिन तीनों झन, जकर बकर देखत सब कोत
जइसे नाविक बीच सिन्धु मं, खोजत रथय कहां के पोत!
जइतू अचरत मं भर पूछिस – “कते डहर हे देसू।
भांचा ला हम चहत देखना – जस फागुन हा टेसू।
अमरउती हा शर्म मं गड़गे, देखे लगिस स्वयं के पांव
एमन बिगर बताय समझ गिन, हमर बहिन हे भारी पांव।
“यदपि जिये के अब लालच नइ, पर ए कारन घसलत – हाय
देश डहर जे नाम हा जुड़थय, जीयत ओकर फूल बचाय। ”
मेहरुओला ढाढस बांधिस – “मरना नइ संहराय के काम
कर संघर्ष जउन ही जीयत, ओकर जगमग होवत नाम।
लक्ष्मीबाई जिनगी खोतिस, पति चिंता मं चिता मं कूद
गोर मन संग कोन हा लड़तिस, अजर अमर नइ रहितिस नाम।”
कथय गरीबा, अमरउती ला – “तंय हा हमर मदद नइ लेत
तोर पास हे धन के कमती, तब तंय कइसे भरबे पेट?”
अमरउती बोलिस – “मंय पाहंव, शासन ले अड़बड़ अक नोट
जीवन अपन चलाहंव सुदृढ़, देसू बर रख लुहूं रपोट।”
मेहरुकिहिस – “वाह रे शासन, तंय देथस आश्वासन मात्र
मरन देस ना देस मोटावन, जीवित के करथस दशगात्र।”
कथय गरीबा हा जइतू ला – “तंय हा बता एक ठन भेद
जे सैनिक शहीद हो जाथय, ओकर रथय वंश परिवार।
ओकर मदद करत शासन हा, ताकि अभाव कष्ट हो दूर
अमरउती कब सुविधा पाहय, पेंशन भूमि नगद मं नोट?”
जइतू कथय -”साफ फोरत हंव – शासन मंगत अचूक प्रमाण
यदि सैनिक के मृत्यु होय हे, मिलना चहिये ओकर लाश।
पर भारत के जटिल हे प्रकरण, हम जानत हन वाजिब गोठ
भारत हा दुश्मन ला मारिस, ओकर संग खुद होय शहीद।
पर भारत के लाश मिलिस नइ, तब शासन दुविधा के बीच
भारत ला “फरार’ मानत अउ, मदद करे बर हे असमर्थ।
अमरउती ला मदद मिलय नइ, ना भुंइया ना धन के लाभ
हम ओला ढाढस हे सकथन, एकर सिवा शक्ति नइ और।”
अमरउती ला दिन सम्बोधन, तीनों झन अब गोड़ हटात
“भाई मन बिन खाय लहुट गिन’ इही सोच बहिनी पछतात।
तीनों झन पाछू नइ देखिन, रेंगिन चुप – पटके बिन पांव
पर जब जानिन – दिदी हिम्मती, गरब साथ देखिन कई घांव।
एमन आगू कोती रेंगिन, जहां पुसऊ के घर तिर गीन
टीकम चम्पी देवलू बोंगडू, खिघू आदि के लगे हे भीड़।
पुसऊ हा रोवत मुड़ ला पटकत, अपन प्राण तक के सुध खोय
देवलू पूछिस -”काबर कलपत, आय तोर पर का तकलीफ?”
मन सम्बोधिस तहां पुसऊ हा, खोले बर लग जथय बिखेद –
“जान लेंव मंय कतका होथय, पुंजलग अउ कंगला मं भेद!
मंय हा करों घमंड उठा मुड़ – असरुहवय अचक धनवान
ओला मंय समधी बनाय हंव, यने उठेहंव मंय खुद ऊंच।
पर अब वाजिब पता चलिस हे – अपन बेवस्ता फोरत साफ –
मोर दुलौरिन अस धरमिन हा, नइ जीयत हे ए संसार।
हत्यारा फंकट अउ असरु, मोर टुरी के जीवन लीन
दाइज के दानव आखिर मं, धरमिन ला खुद के चइ लीस।”
मनसे मन कारण जानिस तंह, कोइला अस मुंह करिया गीस
जइसे घटके गंहुवारी ला, कुहकुह पाला हा झड़कैस।
टीकम टांचिस तुरुत पुसऊ ला -”अचरज होत बात सुन तोर
तंय पतियाय के लाइक गोठिया, हमला काबर करत अवाक!
धरमिन आय तोर सग पुत्री, तब ले मांगत ओकर मौत
लगथय -”तंय पगला होगे हस, काम करत नइ तोर दिमाग?”
पुसऊ किहिस -”मंय हा नइ पगला, जउन बताय जमों सच आय
यदि विश्वास मोर ऊपर नइ, पता करव जा छुईखदान।
असली मं मंय समझ पाय नइ, धरमबती के भाषा व्यंग्य
मंय भुलाय रेहेंव गुमान मं – समधी पाय धनी अड़जंग।
मोर मया हा जहां बीत गिस, पहुंच गेंव खट छुईखदान
असरुके व्यवहार देख के, मोर प्रान हा सुखगे ठाड़।
मोर बिगर ओंमन हा दे दिन, मोर मया धरमिन ला दाग
मुख दरसन तक मिल नइ पाइस, तब लगगे तन बदन मं आग।