"गरीबा / तिली पांत / पृष्ठ - 4 / नूतन प्रसाद शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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− | + | कार जीप पर बइठ के चल दिन छेरकू अउ अधिकारी। | |
+ | मगर घना के तिर नइ वाहन खड़े हे चुप झखमारी। | ||
+ | डेंवा, घना ला चिथिया पूछत -”होत शुरुकब बांध के काम | ||
+ | मंय जिज्ञासु सुने चाहत हंव, यदि जानत तब बता तड़ाक?” | ||
+ | घना सुकुड़दुम हो के बोलिस -”अधिकारी फोरिस नइ साफ | ||
+ | चल ओकर तिर पहुंच के पूछन, बांध हा बन – कब तक तइयार?” | ||
+ | द्वितीय वर्ग के अधिकारी तक, बउरत हें शासन के जीप | ||
+ | मगर विधायक मन बिन वाहन, देखव तो शासन के नीत! | ||
+ | हम्मन जनप्रतिनिधि कहवाथन, जन जन तिर पहुंचे के काम | ||
+ | लेकिन हम सुविधा बर तरसत, कहां पूर्ण जनता के काम! | ||
+ | मोला क्षेत्र किंजरना होथय, मंय हा लेत किराया के जीप | ||
+ | खुद हा देत खर्च के रुपिया, शासन वहन करय नइ भार।” | ||
+ | डेंवा लाय फटफटी अड़जंग, ओमां दुनों बइठ गिन जल्द | ||
+ | कार्यालय तन धड़धड़ जावत, बीच राह उरकिस पेट्रोल। | ||
+ | गीन “पेट्रोल पम्प’ एक संघरा, फटफटी मं पेट्रोल भरैन | ||
+ | अब गिनना हे नगदी रुपिया, देखव कोन गिनत हे नोट! | ||
+ | डेंवा सोचत – बांध हा बनिहय, जमों कृषक के सिंचिहय, खेत | ||
+ | तब मंय काबर खर्च उठावंव, पर के भार कार मुड़ लेंव! | ||
+ | घना आय जनता के मुखिया, सबके उहिच हा ठेकादार | ||
+ | आय खर्च ला भरय उही भर, जनता करिहय जय जयकार। | ||
+ | डेंवा डहर घना हा देखिस, पर डेंवा देखत पर ओर | ||
+ | घना समझगे सब रहस्य ला, डेंवा हटत भरे बर नोट। | ||
+ | सोचत घना- अगर मंय टरकत, मंय हो जंहव व्यर्थ बदनाम – | ||
+ | जनता के धारन कहवावत, पर ओकर हित कर नइ पात। | ||
+ | घना निकालिस जेब ले रुपिया, पटा दीस पेट्रोल के दाम | ||
+ | दुनों पुन& कार्यालय जावत, आखिर पहुंच गीन गंतव्य। | ||
+ | बहुत लिपिक ज।सं।वि। कार्यालय, उंकर टिप्पणी बर असमर्थ | ||
+ | कई झन चाय पान बर खिसके, कइ झन मन मारत गप हांस। | ||
+ | बाहिर बेंच रखाय एक ठन, तातू भृत्य लेत हे नींद | ||
+ | लिपिक मंगत हें पानी फाइल, मुश्किल मं मानत आदेश। | ||
+ | घना विधायक ला बग देखिस, सब आलस्य भगागे दूर | ||
+ | सावधान होथय हड़बड़ कर, मानों सब ले करतबवान। | ||
+ | जमों लिपिक ला इतला देवत – आत विधायक हा इहि ओर | ||
+ | अपन काम हुसियार होव सब, मिलय प्रशंसा पत्र इनाम।” | ||
+ | लिपिक जे किंजरत एतन ओतन, कुर्सी बइठ जथंय चुप शांत | ||
+ | कुर्सी बइठ जउन गप छांटत, फाइल पर गाड़त हे आंख। | ||
+ | लिपिक चैन हा घना ला एल्हत – “कोन विधायक ला डर्रात | ||
+ | एहर काय बिगाड़ सकत हे, चार दिवस बर पद ला पाय।” | ||
+ | बालम किहिस – “सत्य बोलत हस, एकर तिर नइ कुछ अधिकार | ||
+ | ना कर सकत नियुक्ति निलम्बित, पथरा के देवता भर आय।” | ||
+ | ज्ञानिक हा समभाव से बोलिस – “ककरो कार करत हिनमान | ||
+ | ओहर तुम्हर बिगाड़ करत नइ, देवव मान समझ इंसान।” | ||
+ | कार्यालय मं निंगत घना अब, अधिकारी के कमरा गीस | ||
+ | लेकिन बाबूलाल नदारत, ओकर मुंह दरसन नइ दीस। | ||
+ | घना उहें के लिपिक ला पूछिस, कहिथय चैन बला टर जाय – | ||
+ | “साहब पास काम थर के थर, ओकर विस्तृत कर्म के क्षेत्र। | ||
+ | कल भोपाल ले वापिस आइस, मात्र रात भर लीस अराम | ||
+ | आज मुंदरहा निकलगे दौरा, कब वापिस सच कोन बताय!” | ||
+ | घना जान लिस असच बतावत, धोखा देवत मोला। | ||
+ | अैास चैन पर क्रोध मगर, नइ मारिस क्रोध के गोला। | ||
+ | दूसर प्रश्न घना ला पूछिस -“बांध बनाय एक आदेश | ||
+ | ओहर इहां कोन दिन आइस, कब प्रारंभ होत हे काम?” | ||
+ | बालम कहिथय -“हम नौकर अन, होय नियुक्ति सुनन आदेश | ||
+ | यदि आदेश आय कार्यालय, पालन बर हम हन तैयार। | ||
+ | बांध काम ला कोन छेंकिहय, कोन लिही आफत ला मोल | ||
+ | राष्ट्र विकास मदद सब देवत, कोन सकत आदेश उदेल!” | ||
+ | बालम दीस जुवाप अर्थ बिन, सुन के करथय ज्ञानिक रोष | ||
+ | पर काबर ककरो संग उलझय, स्वयं कहत रख स्थिर बुद्धि – | ||
+ | “तोला मंय सच भेद बतावत- कहां के बांध कहां के आदेश | ||
+ | काकरा करा – कोन दिन आइस, हमला सुनगुन तक नइ ज्ञान। | ||
+ | यदि अधिकारी ला पूछत हव, पहुंच जाव फट उंकर निवास | ||
+ | अगर भेंट होवय ओकर संग, पता लगाव भेद ला पूछ।” | ||
+ | ज्ञानिक जउन राह फुरियाइस, घना ला जंच – आथय विश्वास | ||
+ | डेंवा साथ उहां ले निकलिस, पर ए बात कान मं आत। | ||
+ | चैन हा एल्हत हे ज्ञानिक ला – “सब कार्यालय बोलत झूठ | ||
+ | मगर एक सतवंता तंय भर, राह चलत हस पर ले नेक। | ||
+ | कार्यालय ला तंय चलात हस, रख ईमान मान आदेश | ||
+ | सब के भार तोर मुड़ आथय, तोर बिगर कार्यालय सून।” | ||
+ | चलत घना अधिकारी तिर मं, आखिर पहुंचिस उंकर निवास | ||
+ | अचरज मं अंगरी ला चाबत, बाबूलाल के बंगला देख। | ||
+ | बोलिस घना -"बड़े भुंइया मं, मोहक बंगला बने हे बीच | ||
+ | चारों तन हे बाग बगीचा, जेमां हवय फसल फल फूल। | ||
+ | रख रखाव मं खर्च आत कंस, ओला सहत हवय सरकार | ||
+ | मगर फसल फल फूल ला खावत, साहब अउ ओकर परिवार। | ||
+ | शासन के वेतन ला पावत, तेन भृत्य मन इंहे कमात | ||
+ | एक अधिकारी के सेवा बर, पाछू दउड़त कई इंसान।” | ||
+ | डेंवा रखथय प्रश्न घना तिर – “कई सुविधा साहब मन पाय | ||
+ | तंय हा शासन के पटिया अस, कतका सुख सुविधा तंय पाय?” | ||
+ | केंघरिस घना -"अपन का रोवंव – मंय हा रहिथंव अपन मकान | ||
+ | दूरभाष के खर्च पटाथंव, स्वागत खर्च करत मंय पूर्ति। | ||
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16:09, 7 जनवरी 2017 के समय का अवतरण
कार जीप पर बइठ के चल दिन छेरकू अउ अधिकारी।
मगर घना के तिर नइ वाहन खड़े हे चुप झखमारी।
डेंवा, घना ला चिथिया पूछत -”होत शुरुकब बांध के काम
मंय जिज्ञासु सुने चाहत हंव, यदि जानत तब बता तड़ाक?”
घना सुकुड़दुम हो के बोलिस -”अधिकारी फोरिस नइ साफ
चल ओकर तिर पहुंच के पूछन, बांध हा बन – कब तक तइयार?”
द्वितीय वर्ग के अधिकारी तक, बउरत हें शासन के जीप
मगर विधायक मन बिन वाहन, देखव तो शासन के नीत!
हम्मन जनप्रतिनिधि कहवाथन, जन जन तिर पहुंचे के काम
लेकिन हम सुविधा बर तरसत, कहां पूर्ण जनता के काम!
मोला क्षेत्र किंजरना होथय, मंय हा लेत किराया के जीप
खुद हा देत खर्च के रुपिया, शासन वहन करय नइ भार।”
डेंवा लाय फटफटी अड़जंग, ओमां दुनों बइठ गिन जल्द
कार्यालय तन धड़धड़ जावत, बीच राह उरकिस पेट्रोल।
गीन “पेट्रोल पम्प’ एक संघरा, फटफटी मं पेट्रोल भरैन
अब गिनना हे नगदी रुपिया, देखव कोन गिनत हे नोट!
डेंवा सोचत – बांध हा बनिहय, जमों कृषक के सिंचिहय, खेत
तब मंय काबर खर्च उठावंव, पर के भार कार मुड़ लेंव!
घना आय जनता के मुखिया, सबके उहिच हा ठेकादार
आय खर्च ला भरय उही भर, जनता करिहय जय जयकार।
डेंवा डहर घना हा देखिस, पर डेंवा देखत पर ओर
घना समझगे सब रहस्य ला, डेंवा हटत भरे बर नोट।
सोचत घना- अगर मंय टरकत, मंय हो जंहव व्यर्थ बदनाम –
जनता के धारन कहवावत, पर ओकर हित कर नइ पात।
घना निकालिस जेब ले रुपिया, पटा दीस पेट्रोल के दाम
दुनों पुन& कार्यालय जावत, आखिर पहुंच गीन गंतव्य।
बहुत लिपिक ज।सं।वि। कार्यालय, उंकर टिप्पणी बर असमर्थ
कई झन चाय पान बर खिसके, कइ झन मन मारत गप हांस।
बाहिर बेंच रखाय एक ठन, तातू भृत्य लेत हे नींद
लिपिक मंगत हें पानी फाइल, मुश्किल मं मानत आदेश।
घना विधायक ला बग देखिस, सब आलस्य भगागे दूर
सावधान होथय हड़बड़ कर, मानों सब ले करतबवान।
जमों लिपिक ला इतला देवत – आत विधायक हा इहि ओर
अपन काम हुसियार होव सब, मिलय प्रशंसा पत्र इनाम।”
लिपिक जे किंजरत एतन ओतन, कुर्सी बइठ जथंय चुप शांत
कुर्सी बइठ जउन गप छांटत, फाइल पर गाड़त हे आंख।
लिपिक चैन हा घना ला एल्हत – “कोन विधायक ला डर्रात
एहर काय बिगाड़ सकत हे, चार दिवस बर पद ला पाय।”
बालम किहिस – “सत्य बोलत हस, एकर तिर नइ कुछ अधिकार
ना कर सकत नियुक्ति निलम्बित, पथरा के देवता भर आय।”
ज्ञानिक हा समभाव से बोलिस – “ककरो कार करत हिनमान
ओहर तुम्हर बिगाड़ करत नइ, देवव मान समझ इंसान।”
कार्यालय मं निंगत घना अब, अधिकारी के कमरा गीस
लेकिन बाबूलाल नदारत, ओकर मुंह दरसन नइ दीस।
घना उहें के लिपिक ला पूछिस, कहिथय चैन बला टर जाय –
“साहब पास काम थर के थर, ओकर विस्तृत कर्म के क्षेत्र।
कल भोपाल ले वापिस आइस, मात्र रात भर लीस अराम
आज मुंदरहा निकलगे दौरा, कब वापिस सच कोन बताय!”
घना जान लिस असच बतावत, धोखा देवत मोला।
अैास चैन पर क्रोध मगर, नइ मारिस क्रोध के गोला।
दूसर प्रश्न घना ला पूछिस -“बांध बनाय एक आदेश
ओहर इहां कोन दिन आइस, कब प्रारंभ होत हे काम?”
बालम कहिथय -“हम नौकर अन, होय नियुक्ति सुनन आदेश
यदि आदेश आय कार्यालय, पालन बर हम हन तैयार।
बांध काम ला कोन छेंकिहय, कोन लिही आफत ला मोल
राष्ट्र विकास मदद सब देवत, कोन सकत आदेश उदेल!”
बालम दीस जुवाप अर्थ बिन, सुन के करथय ज्ञानिक रोष
पर काबर ककरो संग उलझय, स्वयं कहत रख स्थिर बुद्धि –
“तोला मंय सच भेद बतावत- कहां के बांध कहां के आदेश
काकरा करा – कोन दिन आइस, हमला सुनगुन तक नइ ज्ञान।
यदि अधिकारी ला पूछत हव, पहुंच जाव फट उंकर निवास
अगर भेंट होवय ओकर संग, पता लगाव भेद ला पूछ।”
ज्ञानिक जउन राह फुरियाइस, घना ला जंच – आथय विश्वास
डेंवा साथ उहां ले निकलिस, पर ए बात कान मं आत।
चैन हा एल्हत हे ज्ञानिक ला – “सब कार्यालय बोलत झूठ
मगर एक सतवंता तंय भर, राह चलत हस पर ले नेक।
कार्यालय ला तंय चलात हस, रख ईमान मान आदेश
सब के भार तोर मुड़ आथय, तोर बिगर कार्यालय सून।”
चलत घना अधिकारी तिर मं, आखिर पहुंचिस उंकर निवास
अचरज मं अंगरी ला चाबत, बाबूलाल के बंगला देख।
बोलिस घना -"बड़े भुंइया मं, मोहक बंगला बने हे बीच
चारों तन हे बाग बगीचा, जेमां हवय फसल फल फूल।
रख रखाव मं खर्च आत कंस, ओला सहत हवय सरकार
मगर फसल फल फूल ला खावत, साहब अउ ओकर परिवार।
शासन के वेतन ला पावत, तेन भृत्य मन इंहे कमात
एक अधिकारी के सेवा बर, पाछू दउड़त कई इंसान।”
डेंवा रखथय प्रश्न घना तिर – “कई सुविधा साहब मन पाय
तंय हा शासन के पटिया अस, कतका सुख सुविधा तंय पाय?”
केंघरिस घना -"अपन का रोवंव – मंय हा रहिथंव अपन मकान
दूरभाष के खर्च पटाथंव, स्वागत खर्च करत मंय पूर्ति।