भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गरीबा / तिली पांत / पृष्ठ - 11 / नूतन प्रसाद शर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नूतन प्रसाद शर्मा |संग्रह=गरीबा /...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:16, 7 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

चइती हा पर ला समझावत, मगर स्वयं पर लांछन आत
नाविक हा रक्षा बर जाथय, लेकिन खोवत खुद के जान।
चइती बोलिस -”सुन हठील तंय – मोला झन धर अपन समान
मोर तोर हे राह अलग अस, तंय वापिस ले अपन जबान।”
अब हठील हा हेर कैमरा, फट फट लीस बहुत ठक चित्र
कहिथय -”चइती, तंय हा सुन ले – मंय तोला समझत हंव मित्र।
टांठ बात ला जउन करे हस, ओला मंय कर देवत साफ
अब ए तनी मोर भर चलिहय, पहिलिच ले खोलत हंव साफ।
तोर मदद मंय जभे मांगिहंव, खत्तम रखबे बात के मान
मोर विरुद्ध चाल यदि चलबे, तब तो तोर बहुत नुकसान।
तोर चित्र मंय खींच धरे हंव, ओकर होहय गलत प्रचार
तंय बदनाम हो जबे सब तन, इज्जत गिरिहय मुड़ के भार”
चइती क्रोध गुटक के निकलिस, शांतिदूत कार्यालय अैभस
उहां छेरकू अउ जहरी ला, आपुस मं गोठियावत पैस।
छेरकू बोलिस -”काय कहंव मंय – जनता के करथंव उपकार
ओहर गुनहगरी बेअकली, मोर हइन्ता करथय झार।
लेखक औरत महिला रोगी, मतदाता मजदूर किसान
एमन होथंय देश के दुश्मन, यने होत सब ले बइमान।

“मंय कुछ दिन पहिली विदेश गेंव
उहां अतेक ऊंचा पीढ़ी दीन के
सच बताय मं आवत लाज
उहां के जनता
अपन देश बर ईमानदार हे
अउ इहां के मनखे के चाला ला परखथंव-
ते मोर मुड़ी हा
अपने आप खाल्हे कोती निहर जाथे।
बार बार हड़ताल अउ करथंय घेरी बेरी मांग।
एमन ला देख के
मोर तन बदन मं अंगार धधक जाथय
पर आखिर कर देथंव माफ।”

एकर बाद किहिस अउ छेरकू -”ऊपर केहेंव बात अभि जेन
ओला मन मं लुका के रखबे, एकर झन करबे कुछसोर।
अब ए डहर जउन मंय बोलत, ओला अपन पत्र मं छाप
जनता पढ़के गदगद होवय, ओकर हटय फिकर संताप –
“शासन हा सब ला सुख देहय, बस नेता अस झाराझार
कृषक के लागा माफी होहय, युवक हड़प लेहंय रोजगार।
श्रमिक के मजदूरी हा बढ़िहय, बालक मन शिक्षा अउ खेल
अबला मन हर हक ला पाहंय, यने न्याय सब झन के साथ -”
छेरकू हा जहरी ला बोलिस -”तंय हा जोड़ सकत अउ पंक्ति
हमर घोषणा पढ़ंय लोग तब, सब दिन अस मन राखंय भक्ति”।
जहरी खलखल हांसत बोलिस -”वाकई तंय हस बहुत चलाक
केकरा असन चाल ला चलथस, तब कुर्सी पर सदा बिराज”।
तब पिनकू हा आके बोलिस – “मेहरुभेजिस रचना एक
करके कृपा छाप दव एला, लिखे हवय वैचारिक लेख”।
पिनकू हा रचना हेरिस अउ जहरी डहर बढ़ाइस।
लेकिन जहरी छेंकिस सम्पादक के चाल बताइस।
कहिथय -”तंय दानी ला जानत, जे साहित्य मं हे विख्यात
ओकर छपे बहुत ठक पुस्तक, कई संस्था ले पाय इनाम।
दानी हा रचना भेजिस हे, ओला मंय देवत स्थान
जलगस ओकर रचना छपिहय, दूसर ला नइ देंव जबान।
मेहरुगांव गंवई मं रहिथय, कहां लिख सकत लेख यथार्थ
नाम कमाय अगर मन होवत, कविता छोड़ करय परमार्थ”।
पिनकू काबर उहां बिलमतिस, ओ तिर ला फट कर दिस त्याग
बाहिर मं आइस तब देखिस, युवक करत हें हक के मांग
मार अवाज युवक चिल्लावत -”हम देवत हन कतको बांग
लेकिन शासन सुनइ करत नइ, टुकनी फेंका जथय सब मांग।
हम शिक्षित हन तभो निठल्ला, अब तक कहां पाय रोजगार!
पर मन कमा पेट ला तारत, तिसने हमूं चहत अधिकार”।
बुल्खू उही जगह मं पहुंचिस, युवक ला देखिस हालबेहाल
उंकर समर्थन करना वाजिब, तब देवत हे नेक सलाह।
बुल्चू बोलिस -”स्वीकारत हंव – तुम्मन हेरत हव सच बोल
जउन बेवस्ता अपन बतावत, ओमां एकोकन नइ पोल।
पर एक गोठ निचट अंदरुनी – जब तक भुकरत पूंजीवाद
तुम्हर समस्या हल नइ होवय, बेकारी लुटही मरजाद।
वर्तमान शासन हा देवत – आश्वासन अटपट गोठियाय
पर सब झन के पेट हे रीता, होत हवय जन पर अन्याय।
तरहा तरहा जउन बनावत, ओकर जड़ ला कोड़ गिराव
बिगर अधर तंह भर्रस गिरिहय, सब ला मिलिहय जेवन छाय”।
नवजवान मन किरिया खाइन – शासन संग करबो संघर्ष
ठाड़ बाय नइ रहन हमन हा, जलगस नइ आहय सुख हर्ष।”
बुल्खू बोलिस – “तुम बोले हव, ओमां मंय कुछ करत सुधार
यदि तुम्मन सुख शांति के इच्छुक, बुद्धि शांत रख करव उपाय।
शासन गलत नीति पर रेंगत, ओकर करव अवश्य विरोध
यदि जनहित मं नीति लाभप्रद, देव समर्थन द्वेष ला त्याग।
गरम खून ला मंय देखे हंव – असफलता मं होत निराश
तहां आत्महत्या तक करथंय, अपन हाथ मं बनथंय लाश।
पर सच मं एहर कायरता, शोषक ले तुम हा डर गेव
क्षणिक उत्तेजना हा आखिर मं, तुम्हर प्राण के लेलिस हूम।
मंय सलाह देवत अतकिच अस – होवत तुम पर अत्याचार
अत्याचार ला सहि लव बिन मन, काबर के तुम निर्बल दीन।