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मींधू तिर मं मिठई हे थोरिक, ओला खाय छबलू अब टोनही मन पांचों झन ला दीसछबलू मार गफेला खावत, पर बना के रखिहंय रक्सा भूततंह जीयत ला कुटका तक नइ दीस।भूत धराहंय, जीव घलो लेहंय कर नेत।”पिनकू हा मींधू ला कुछ मुसका के बोलिस -”छबलू ”घर ला पटाय हस घूंसलेत अंधविश्वासशुभ मुहूर्त के कारण मिलिहयएकर होत विरोध खूब जम, तोला अवस शासकीय काम”।तभो ले आखिर बनथन दास।सब झन हंसिन खलखला तंहने पिनकू नापिस रस्ता।एकर पर विश्वास करत शिक्षित वैज्ञानिक ज्ञानी।आगू तन सत्य बतातिन तेमन पीयत – टोना रुढ़ि के दृष्य देख के रहिगे हक्का बक्का।लगे चुनू के हाथ मं बेली, दू आरक्षक ओकर साथमानी।एकर बाद चलिस पिनकू पूछिस -”दंग होत हंवहा, तोर अभी देखत हवय गांव के हालत देख।काम –ककरो ऊपर दुख आथय तबपरब देवारी तिर मं आवत, करथस मदद हड़बड़ा दौड़मनसे मन के बंद अराम।कभू गलत रद्दा नइ रेंगसदेवारी के अड़बड़ बूता, देत नियम कानून ला साथ।ककरो उल नइ पावत ओंठमगर आज का जुरुम करे हसमांईलोगन मन भिड़ पोतत, लगे हवय का धारा ठोसफूल उतारत भिथिया कोठ।आखिर काय बात ए वाजिब, अपन समझ दूसर दिन पिनकू के फुरिया साफ?”संग मं, मेहरुके फट होगिस भेंटकलपिस चुनू – “नेक मनखे पिनकू हारचना ला हेरिस, अपन ला बोलत निश्छल नेककर दिस मेहरुके अधिकार।ओकर पर यकीन नइ होवयकहिथय -”तोर स्तरीय रचना, दुश्चरित्र के लगथय दाग।रखे जउन मं उच्च विचारतइसे निरपराध हंव मंय ओला जहरी हालहुटा दिस, पर प्रमाण छापे बर मुश्किल होतकर दिस इंकार।मगर तोर एकर ले अतका मांगत – मोर व्यथा पर कर विश्वास।तोर हालत कइसे, होवत हस का बहुत निराशखोरबहरा तंय भविष्य मं रचना लिखबे, या लेखन ला करबे बंद?”मेहरुहंस के हत्या होगिसउत्तर देथय -”करत कृषक मन कृषि के काममिहनत कर नंगत व्यय करथंय, दूसर व्यक्ति करिस अपराधपर फल मं पावत नुकसान।पर अधिनियम हा मोला धांधतकृषि कर्म ला कभु नइ छोड़य, मोर मुड़ी चलत राह पर डारत दोष।कर उत्साह“तीन सौ दो’ धारा हा पकड़तसाहस करके टेकरी देवत, तब हथकड़ी लगे हे हाथतभे विश्व ला मिलत अनाज।मोर खिलाफ दर्ज हे प्रकरणउही कृषक के तिर मंय बसथंव, न्यायालय मं मोर बलाव।तब उत्साह रखत हंव पासमंय अब तक विश्वास रखे हंवकतको रचना लहुट के आवत, जब वास्तव मगर दूर मं मंय निर्दाेषरहत निराश।मोला दण्ड मिलन नइ पावय, छेल्ला घुमिहंव इज्जत साथ”।सम्पादक रुढ़िवादी होथंय – युग ला छोड़ चलत हें राहपिनकू बोलिस -”निरदोसी हससमय विचार बदल जाथय जब, यदि तंय दण्ड मुक्त हो जाततब ओला करथंय स्वीकार।तंय हा दूध भात चर्चित अउ परिचित लेखक ला खाबे, हमर हृदय के खिलही फूल।सम्पादक मन स्वीकृति देतपर तंय धोखा मं झन रहिबे, सावधान रहिबे हर टेमअपन उनकर रचना ला सुरक्षित राखे बरनइ जांचंय, पहिलिच ले प्रबंध कर लेव।”भले लेख होवय निकृष्ट।तभे अै न सुखमा अउ नीयतसम्पादक के कुर्सी पावत, ओकर साथ एक ठन भैंसतंहने खुद ला समझत श्रेष्ठसुखमा पूछिस -”पहिचानत हव – एहर आय सुंदरिया भैंस?”चुनू अपन विपदा श्रेष्ठ लेख ला भूलिसटुकनी फेंकत, कहिथय – “मंय हा जानत खूबसाहित्यिक कृति करथंय नष्ट।एहर दुर्घटना साहित्य मं घायलपरिवर्तन आथय, अब तब छुटतिस एकर प्रान।तउन ले सम्पादक अनभिज्ञबपरी के उपचार करे बरलेखक जउन करत परिवर्तन, तोर पास हम धर के गेनओहर खावत हे दुत्कार।”अब भैंसी मेहरुहा ठसलग गोठिया के तबियत उत्तम, घोसघोस उहां ले मोटाय हे देह।”सरके करिस प्रयाससुखमा बोलिस पिनकू पूछिस -”तुम्हरे कारन”कहां चलत हस, बपरी मोर पास कुछ समय तो मेट?देवारी हा जीयत हे आजलकठा आगे, जावत शहर फटाका लायबिगर पुछन्ता नंगत असन बिसा के यदि होतिसलाबे, खुरच खुरच के देतिस जान।”हमूं ला देबे धांय बजाय।”पिनकू हा सुखमा मेहरुकिहिस -”मोर ला बोलिस -”तंय हा करे हमर तारीफओकर ले हम गदगद होवत, मगर चुनू के दुर्गति देख सुन तंय मंय खैरागढ़ जावत आजमरत रथय घुरुवा मन के जीव बचाथयचलत अदालत, ओकर अंतिम निर्णय आज।एकर पहिली बल्ला मालिक, अउ असहाय घुरुवा मन के टेकनी आयबनिन गवाहखुद मुजरिम मन हा निरपराध हे तब लेबच जावय कहि, फंसगे हत्या ओमन बोल के अपराध।”हेरिन राह।सुखमा बोलिस मेहरुहवय तेन तिर पहुंचिन “दंग होत हंव – वाकई होय गलत अनियावबिरसिंग मगन घुरुवा बिसनाथजे मनसे ईनाम ला पातिसएमन अब खैरागढ़ जावत, ओला कार मिलत हे दण्ड!बपुरा मन असहाय अनाथ।पर मोला विश्वास अभी तक – चुनू करे हे हित न्यायालय के कामओकर फल तिर मं अच्छा मिलिहयपहुंचिन, सब प्रकरण हो जही समाप्त।”खेदू संग होगिस मुठभेड़सब झन अपन राह पर रेंगिन, पिनकू खेदू ला बिसनाथ हा सुन्तापुर गांवओला जहां सनम हा मिलथय, पूछत हवय गांव पूछिस -”साफ फोर तंय खुद के हाल –हाल।“खूंटा गाड़ गांव मं रहिथसतंय अपराध करे हस कइ ठक, तब तंंय समाचार न्यायालय का दण्ड ला बोलदीसतोर ददा कतका रुपिया के तबियत कइसेजुर्माना, ओकर हालत ला सच खोलकतका वर्ष के कारावास?”सनम किहिस – “मंय दुख का रोवंवखेदू बफलिस -”अटपट झन कह, दुख हा आवत धर के रेमतुम्हर असन मंय नइ अभियुक्तसुख ला हांका पार बलावतमोर बिगाड़ कोन हा करिहय, पर आखिर होगेंव बर्बाद –केकती नामक गाय रिहिस हे, उही गाय गाभिन हो गीसमंय किंजरत फिक्कर ले मुक्त।छेरकू हा आश्वासन देइस ओला देख ददा कर दिस पूरा।जतका अपराधिक प्रकरण तेमन बह गिन जस पूरा।यने राज्य शासन वापिस लिस – जनहित मं अपराध ला फूलयमोरन्यायालय हा धथुवा रहिगे, केकती के कंस जतन बजाय।मोर उड़त सब दिशा मं सोर।”बोलय बिरसिंग कथय -”गाय बियाही तंहने”समझ ले बाहिर, देहय दूध कसेली एकजब तंय वास्तव मं अभियुक्तमोर गली नाती बर बढ़िया – पिही पेट भर मिट्ठी दूध।अर्थदण्ड अउ जेल मं जातेस, पर हरहा अस किंजरत मुक्त।हम्मन खाबो खीर सोंहारीहम निर्दाेष हवन सब जानत, तब तभो ले बचिहय कतको दूधफांसत हे कानूनओकर दही मही बन जाहय, तंहने हेर सकत हन घीव।पर दुर्घटना इही बीच हम्मन निर्णय मंहा पावत – इही सोच तन होवत सून।”घुरुवा मन के समय अैमस तंह, केकती ला बघवा धर लीसन्यायालय के अंदर गीनजहां ददा हा खभर इनकर निर्णय ला अमरिसजाने बर, गाय पास पहुंचिस तत्काल।कतको मनसे भीतर गीन।शेर हा गाय ला धरे जम्हड़ केमोतिम न्यायाधीष उपस्थिति, पीयत हवय सपासप खूनमुजरिम मन कटघरा मं ठाड़ओला जहां ददा इंकर हृदय हा देखिसधकधक होवत – अब तब टूटही बिपत पहाड़।हरिन डरत हे देख शिकारी, एकर घलो उबलगे खून।मछरी डरत देख के जालअपन शक्ति भर लउठी तानिसटंगिया देख पेड़ थर्राथय, शेर ला मारत हेरत दांवहंसिया ले भय खात पताल।कतका मार शेर न्यायाधीष हा खावयनिर्णय देइस – “हाजिर हें अपराधी जेनतुम पर चार लगे हे धारा, ददा उपर कूदिस कर हांव।जेहर एकदम कड़कड़ ठोस।शेर ले मनसे के कम ताकतपांच सौ छै बी- तीन सौ एकचालिस, बघवा लीस ददा के जीवएमन दुनों सिद्ध नइ होयओकर पहिली बच तब आरोप मुड़ी ले बाहिर, दण्ड करन पावत नइ पाइसबेध।तीन सौ तिरपन – दू सौ चौरनबे, गाभिन गाय के तलफत जान।”ए अपराध प्रमाणित होयपिनकू हा दुख मान के कहिथय हर अभियुक्त जेल ला भोगव “वन के पास करत हम वासगिन दू साल माह बस तीन।होत हमर बर अति दुख दायकअजम वकील सन्न अस रहिगे, जीयत जीव बनत हे लाश।अभिभाषक कण्टक मुसकातवन्य जीव मुजरिम मन नंगत बाढ़तकारागृह जावत, एकर जेला “नरख’ कथंय सब लोग।न्यायालय ले खतरा बढ़ गीसनिकलिस मेहरु, मिलिन बहल बेदुल दू जीवफसल मनुष्य अउ पशु बेदुल हा खेदू ला मारतखोजत, निर्भय किंजरत उठा अपन साथ रख पसिया पेज।मेहरुचहत बात कुछ कहना, पर बेदुल के शीश।पर तन ध्यानलकड़ी कटई बंद हे कड़कड़आखिर मं खेदू हा मिल गिस, र्इंधन बर लकड़ी नइ पातओकर बढ़े भयंकर रौब।वन के पास बसत हन हम्मनमनखे मन जुरियाय तिंकर तिर, मात्र पेड़ देखत रहि जात।अपन शक्ति के मारत डींगपर्यावरण दमऊ के रक्षा खातिरटोंटा ला चपके बर, दफड़ा करथय खूब उपाय करय सरकारअवाज।मगर हमर तकलीफ ला देखयखेदू किहिस -”खूब मंय चर्चित, वरना वन तिर रहई बेकार।”दैनिक पत्र मं छपगे नामकहिथय सनम -”एक ठन अउ सुन – दुखिया अउ गरीबा के हालदुनों एक संग जीवन काटतमंय हा कतको जुरुम करे हंव, रेंगत गली उठा कई जन के भाल।मारे हंव जान।अंकालू भाजी भांटा ला खुशी नइ पाइस, मृत्यु लेग गिस करके टेक।हवलदार ला तंय जानत हस पोइलत तब गिरिस कुआं आत्मा मं भर्रस जेनन कसक न पीरओकर खूब इलाज चलिस हेमनसे ला नंगत झोरिया के, पर बन गीस काल ले ग्रास।मंय पावत हंव नव उत्साह।”पोखन खड़ऊ मं चढ़के रेंगिसओ तिर खड़े हवंय जे मनखे, ओला जिमिस धनुष टंकोरक्रूर कथा सुन आंख घुमातघटना के संबंध मं उनकर रुआं खड़े होवत – अटपट बात गली घर खोर।मनसे डर, मन चुप चुप गोठियावत – देवारी हा आगिस पासटोनही मन के जिव करलावत, तभे पांच झन बनगे लाश।कांपत पान समान।
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