भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गरीबा / तिली पांत / पृष्ठ - 17 / नूतन प्रसाद शर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नूतन प्रसाद शर्मा |संग्रह=गरीबा /...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
 
}}
 
}}
 
<poem>
 
<poem>
अब टोनही मन पांचों झन ला, बना के रखिहंय रक्सा भूत
+
ठेपू कथय -”बिकट मनसे हस, तंय हस मित्र निघरघट जीव
तंह जीयत ला भूत धराहंय, जीव घलो लेहंय कर नेत।”
+
गोल्लर अस अंड़िया के रेंगत, सब ला रखत कांरव मं दाब।”
पिनकू कुछ मुसका के बोलिस -”घर ला लेत अंधविश्वास
+
बेदुल के अब कान पिरावत, खेदू के सुन क्रूर घमंड
एकर होत विरोध खूब जम, तभो ले आखिर बनथन दास।
+
बेदुल के नकडेंवा चढ़गे, ओहर सवा सेव बन गीस।
एकर पर विश्वास करत शिक्षित वैज्ञानिक ज्ञानी।
+
खेदू ला भन्ना के पूछिस -”तंय अस कोन करत का काम
सत्य बतातिन तेमन पीयत – टोना रुढ़ि के मानी।
+
मंय हा चहत तोर सच परिचय, ताकि तोर जस हर ठंव गांव?”
एकर बाद चलिस पिनकू हा, देखत हवय गांव के काम –
+
खेदू कहिथय – “पिया चुके हंव, मोर शक्ति ला सब के कान
परब देवारी तिर मं आवत, मनसे मन के बंद अराम।
+
पर अब गर्व साथ खोलत हंव, मोर सिंहासन कतका ऊंच!
देवारी के अड़बड़ बूता, ककरो उल नइ पावत ओंठ
+
मंय करथंव अपराध बेहिचक, मोला जम्हड़ लेत कानून
मांईलोगन मन भिड़ पोतत, फूल उतारत भिथिया कोठ।
+
पुलिस अदालत प्रकरण चलथय, खेदू पाय कड़ाकड़ दण्ड।
दूसर दिन पिनकू के संग मं, मेहरुके फट होगिस भेंट
+
पर मंय साक्षी ला फोरत हंव, या धमकी झड़ खेदत दूर
पिनकू हा रचना ला हेरिस, कर दिस मेहरुके अधिकार।
+
जब आरोप सिद्ध नइ होवय, मंय निर्दाेष प्रमाणित होत।”
कहिथय -”तोर स्तरीय रचना, रखे जउन मं उच्च विचार
+
खेदू टेस बतावत पर बेदुल कांपत जस पाना।
ओला जहरी हा लहुटा दिस, छापे बर कर दिस इंकार।
+
आखिर जब सइहारन मुस्कुल क्रोध फुटिस बन लावा।
एकर ले तोर हालत कइसे, होवत हस का बहुत निराश
+
भड़किस – “रोक प्रशंसा ला अब, अति के अंत होय के टेम
तंय भविष्य मं रचना लिखबे, या लेखन ला करबे बंद?”
+
पांप के मरकी भरत लबालब, तभे हमर अस लेवत जन्म।”
मेहरुहंस के उत्तर देथय -”करत कृषक मन कृषि के काम
+
खेदू के टोंटा ला पकड़िस, अपन डहर झींकिस हेचकार
मिहनत कर नंगत व्यय करथंय, पर फल मं पावत नुकसान।
+
भिड़ के शुरुकरिस दोंगरे बर, सरलग चलत मार के वार।
पर कृषि कर्म ला कभु नइ छोड़य, चलत राह पर कर उत्साह
+
कृषक हा बइला ला गुचकेलत, डुठरी ला कोटेला दमकात
साहस करके टेकरी देवत, तभे विश्व ला मिलत अनाज।
+
बेदुल हा खेदू ला झोरत, यद्यपि अपन हंफर लरघात।
उही कृषक के तिर मंय बसथंव, तब उत्साह रखत हंव पास
+
खेदू ला भुइया मं पटकिस, ओकर वक्ष राख दिस पांव
कतको रचना लहुट के आवत, मगर दूर मं रहत निराश।
+
खेदू ला बरनिया के देखत, खुद के परिचय साफ बतात –
सम्पादक रुढ़िवादी होथंय – युग ला छोड़ चलत हें राह
+
“मरखण्डा ला मंय पहटाथंव, हत्यारा के लेथंव प्राण
समय विचार बदल जाथय जब, तब ओला करथंय स्वीकार।
+
शोषक के मंय शोषण करथंव, मंय खुश होवत ओला लूट।
चर्चित अउ परिचित लेखक ला, सम्पादक मन स्वीकृति देत
+
न्यायालय समाज पंचायत, शासन साथ पुलिस कानून
उनकर रचना ला नइ जांचंय, भले लेख होवय निकृष्ट।
+
एमन अपराधी ला छोड़त, यने दण्ड देवन नइ पांय।
सम्पादक के कुर्सी पावत, तंहने खुद ला समझत श्रेष्ठ
+
तब मंय हा जघन्य मुजरिम ला, अपन हाथ ले देवत दण्ड
श्रेष्ठ लेख ला टुकनी फेंकत, साहित्यिक कृति करथंय नष्ट।
+
ओकर नसना रटरट टूटत, मंय मन भर पावत संतोष।”
साहित्य मं परिवर्तन आथय, तउन ले सम्पादक अनभिज्ञ
+
मनसे भीड़ कड़कड़ा देखत, मगर करत नइ बीच बचाव
लेखक जउन करत परिवर्तन, ओहर खावत हे दुत्कार।”
+
चलत दृष्य के करत समीक्षा, चम्पी तक हा झोंकिस राग –
मेहरुहा ठसलग गोठिया के, उहां ले सरके करिस प्रयास
+
“खेदू हे समाज के दुश्मन, पथरा हृदय बहुत हे क्रूर
पिनकू पूछिस -”कहां चलत हस, मोर पास कुछ समय तो मेट?
+
ओकर दउहा मिटना चहिये, तब समाप्त जग अत्याचार।
देवारी हा लकठा आगे, जावत शहर फटाका लाय
+
बेदुल असन बनंय सब मनसे, जेन करत एक तौल नियाव
नंगत असन बिसा के लाबे, हमूं ला देबे धांय बजाय।”
+
अपराधी ला दण्डित करथय, दीन हीन ला प्रेम सहाय।”
मेहरुकिहिस -”मोर ला सुन तंय मंय खैरागढ़ जावत आज
+
तब मेहरुहा बहल ला बोलिस “फोर पात नइ अपन विचार
घुरुवा मन के चलत अदालत, ओकर अंतिम निर्णय आज।
+
पक्ष विपक्ष कते तन दउड़ंव, दूनों बीच कलेचुप ठाड़।
एकर पहिली बल्ला मालिक, घुरुवा मन के बनिन गवाह
+
अनियायी के भरभस टूटय, अत्याचार के बिन्द्राबिनास
मुजरिम मन हा बच जावय कहि, ओमन बोल के हेरिन राह।
+
पर समाप्त बर कते तरीका, भूमि लुकाय कंद अस ज्वाप।
मेहरुहवय तेन तिर पहुंचिन – बिरसिंग मगन घुरुवा बिसनाथ
+
अपराधी शोषक परपीड़क, पापी जनअरि मनखेमार
एमन अब खैरागढ़ जावत, बपुरा मन असहाय अनाथ।
+
इनकर नसना ला टोरे बर, दण्ड दीन – जीवन हर लीन।
न्यायालय के तिर मं पहुंचिन, खेदू संग होगिस मुठभेड़
+
तउन क्रांतिकारी ईश्वर बन, सब झन पास प्रतिष्ठा पैन
खेदू ला बिसनाथ हा पूछिस -”साफ फोर तंय खुद के हाल।
+
उनकर होत अर्चना पूजा, कवि मन लिखिन आरती गीत।
तंय अपराध करे हस कइ ठक, न्यायालय का दण्ड ला दीस
+
पर एकर फल करुनिकलगे, गलत राह पकड़िन इंसान
कतका रुपिया के जुर्माना, कतका वर्ष के कारावास?”
+
हिंसा युद्ध बढ़िस दिन दूना, शासन करिस अशांति तबाह।
खेदू बफलिस -”अटपट झन कह, तुम्हर असन मंय नइ अभियुक्त
+
जइसन करनी वइसन भरनी, पालत अगर इहिच सिद्धान्त
मोर बिगाड़ कोन हा करिहय, मंय किंजरत फिक्कर ले मुक्त।
+
बम के बदला बम हा गिरिहय, राख बदल जाहय संसार।”
छेरकू हा आश्वासन देइस ओला कर दिस पूरा।
+
आगी हा जब बरत धकाधक, रोटी सेंके बर मन होत
जतका अपराधिक प्रकरण तेमन बह गिन जस पूरा।
+
बहल के मन होवत बोले बर, हेरत बचन धान अस ठोस-
यने राज्य शासन वापिस लिस – जनहित मं अपराध ला मोर
+
“आग ला’ अग्नि शमन दल, रोकत, रुकत तबाही होवत शांत
न्यायालय हा धथुवा रहिगे, मोर उड़त सब दिशा मं सोर।”
+
तइसे नवा राह हम ढूंढन, तब संभव जग के कल्याण।”
बिरसिंग कथय -”समझ ले बाहिर, जब तंय वास्तव मं अभियुक्त
+
झंझट चलत तउन अंतिम तंह, दुनों विश्वविद्यालय गीन
अर्थदण्ड अउ जेल मं जातेस, पर हरहा अस किंजरत मुक्त।
+
उहां रिहिस ढेला कवियित्री, तेकर साथ भेंट हो गीस।
हम निर्दाेष हवन सब जानत, तभो ले फांसत हे कानून
+
ढेला उंहचे करत नौकरी, पाय प्रवक्ता पद जे उच्च
हम्मन निर्णय मं हा पावत – इही सोच तन होवत सून।”
+
ओकर रुतबा सब ले बाहिर, लेकिन रखत कपट मं दाब।
घुरुवा मन के समय अैमस तंह, न्यायालय के अंदर गीन
+
ढेला हा मेहरुला बोलिस -”मोर नाम चर्चित सब ओर
इनकर निर्णय ला जाने बर, कतको मनसे भीतर गीन।
+
दैनिक पत्र हा स्वीकृति देथय, कई ठक पुस्तक छपगे मोर।
मोतिम न्यायाधीष उपस्थिति, मुजरिम मन कटघरा मं ठाड़
+
दिखत दूरदर्शन मं मंय हा, मिंहिच पाठ्य पुस्तक मं छाय
इंकर हृदय हा धकधक होवत – अब तब टूटही बिपत पहाड़।
+
देत समीक्षक मन हा इज्जत, साहित्य मं प्रकाशित नाम।”
हरिन डरत हे देख शिकारी, मछरी डरत देख के जाल
+
गांव के लेखक आय बहल हा, चुपे सुनत ढेला के डींग
टंगिया देख पेड़ थर्राथय, हंसिया ले भय खात पताल।
+
जतका ऊंच डींग हा जावत, उसने बहल के फइलत आंख।
न्यायाधीष हा निर्णय देइस – “हाजिर हें अपराधी जेन
+
जब ढेला हा उहां ले हटगिस, बहल अैेस मेहरुके पास
तुम पर चार लगे हे धारा, जेहर एकदम कड़कड़ ठोस।
+
पूछिस -”ढेला जे उच्चारिस, ओमां कतका प्रतिशत ठीक?”
पांच सौ छै बी- तीन सौ एकचालिस, एमन दुनों सिद्ध नइ होय
+
मेहरुकथय -”किहिस ढेला हा, तेन बात हा बिल्कुल ठोस
तब आरोप मुड़ी ले बाहिर, दण्ड करन पावत नइ बेध।
+
शिक्षा उच्च पाय मिहनत कर, संस्था उच्च पाय पद उच्च।
तीन सौ तिरपन – दू सौ चौरनबे, ए अपराध प्रमाणित होय
+
पर अचरज के तथ्य मंय राखत, जीवन पद्धति राखत खोल –
हर अभियुक्त जेल ला भोगव – गिन दू साल माह बस तीन।
+
संस्था परिसर रहत रात दिन, पुस्तक संग संबंध प्रगाढ़।
अजम वकील सन्न अस रहिगे, अभिभाषक कण्टक मुसकात
+
अपन ला प्रतिष्ठित समझत हें, जन सामान्य ले रहिथंय दूर
मुजरिम मन कारागृह जावत, जेला “नरख’ कथंय सब लोग।
+
उंकर पास नइ खुद के अनुभव, पर के पांव चलत हें राह।
न्यायालय ले निकलिस मेहरु, मिलिन बहल बेदुल दू जीव
+
कथा ला पढ़ के लिखत कहानी, पर के दृष्य विचार चुरात
बेदुल हा खेदू ला खोजत, अपन साथ रख पसिया पेज।
+
समय हा परिवर्तित हो जावत, तेकर ले ओहर अनजान।
मेहरुचहत बात कुछ कहना, पर बेदुल के पर तन ध्यान
+
भूतकाल के कथा जउन हे, ओला वर्तमान लिख देत
आखिर मं खेदू हा मिल गिस, ओकर बढ़े भयंकर रौब।
+
अपन समय ला पहिचानय नइ, कहां ले लिखहीं सत्य यथार्थ!”
मनखे मन जुरियाय तिंकर तिर, अपन शक्ति के मारत डींग
+
मेहरुबात चलावत जावत, तभे बहल ला मारिस रोक –
दमऊ के टोंटा ला चपके बर, दफड़ा करथय खूब अवाज।
+
“जेन काम दूसर मन करथंय, उहिच काम तंय तक धर लेस।
खेदू किहिस -”खूब मंय चर्चित, दैनिक पत्र मं छपगे नाम
+
उच्च विशिष्ट जउन मनसे हे, उंकर होत आलोचना खूब
मंय हा कतको जुरुम करे हंव, कई जन के मारे हंव जान।
+
उंकरेच बाद प्रशंसा होवत, आखिर चर्चित उंकरेच नाम।
भाजी भांटा ला पोइलत तब – आत्मा मं न कसक न पीर
+
सिंचित भूमि मं किसान मन हा, डारत बीज लान के कर्ज
मनसे ला नंगत झोरिया के, मंय पावत हंव नव उत्साह।”
+
उहिच भूमि मं करत किसानी, नफा होय या हो नुकसान।
ओ तिर खड़े हवंय जे मनखे, क्रूर कथा सुन आंख घुमात
+
भूमि कन्हार जमीन असिंचित, एला देख भगात किसान
उनकर रुआं खड़े होवत डर, मन मन कांपत पान समान।
+
 
</poem>
 
</poem>

16:46, 7 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

ठेपू कथय -”बिकट मनसे हस, तंय हस मित्र निघरघट जीव
गोल्लर अस अंड़िया के रेंगत, सब ला रखत कांरव मं दाब।”
बेदुल के अब कान पिरावत, खेदू के सुन क्रूर घमंड
बेदुल के नकडेंवा चढ़गे, ओहर सवा सेव बन गीस।
खेदू ला भन्ना के पूछिस -”तंय अस कोन करत का काम
मंय हा चहत तोर सच परिचय, ताकि तोर जस हर ठंव गांव?”
खेदू कहिथय – “पिया चुके हंव, मोर शक्ति ला सब के कान
पर अब गर्व साथ खोलत हंव, मोर सिंहासन कतका ऊंच!
मंय करथंव अपराध बेहिचक, मोला जम्हड़ लेत कानून
पुलिस अदालत प्रकरण चलथय, खेदू पाय कड़ाकड़ दण्ड।
पर मंय साक्षी ला फोरत हंव, या धमकी झड़ खेदत दूर
जब आरोप सिद्ध नइ होवय, मंय निर्दाेष प्रमाणित होत।”
खेदू टेस बतावत पर बेदुल कांपत जस पाना।
आखिर जब सइहारन मुस्कुल क्रोध फुटिस बन लावा।
भड़किस – “रोक प्रशंसा ला अब, अति के अंत होय के टेम
पांप के मरकी भरत लबालब, तभे हमर अस लेवत जन्म।”
खेदू के टोंटा ला पकड़िस, अपन डहर झींकिस हेचकार
भिड़ के शुरुकरिस दोंगरे बर, सरलग चलत मार के वार।
कृषक हा बइला ला गुचकेलत, डुठरी ला कोटेला दमकात
बेदुल हा खेदू ला झोरत, यद्यपि अपन हंफर लरघात।
खेदू ला भुइया मं पटकिस, ओकर वक्ष राख दिस पांव
खेदू ला बरनिया के देखत, खुद के परिचय साफ बतात –
“मरखण्डा ला मंय पहटाथंव, हत्यारा के लेथंव प्राण
शोषक के मंय शोषण करथंव, मंय खुश होवत ओला लूट।
न्यायालय समाज पंचायत, शासन साथ पुलिस कानून
एमन अपराधी ला छोड़त, यने दण्ड देवन नइ पांय।
तब मंय हा जघन्य मुजरिम ला, अपन हाथ ले देवत दण्ड
ओकर नसना रटरट टूटत, मंय मन भर पावत संतोष।”
मनसे भीड़ कड़कड़ा देखत, मगर करत नइ बीच बचाव
चलत दृष्य के करत समीक्षा, चम्पी तक हा झोंकिस राग –
“खेदू हे समाज के दुश्मन, पथरा हृदय बहुत हे क्रूर
ओकर दउहा मिटना चहिये, तब समाप्त जग अत्याचार।
बेदुल असन बनंय सब मनसे, जेन करत एक तौल नियाव
अपराधी ला दण्डित करथय, दीन हीन ला प्रेम सहाय।”
तब मेहरुहा बहल ला बोलिस – “फोर पात नइ अपन विचार
पक्ष विपक्ष कते तन दउड़ंव, दूनों बीच कलेचुप ठाड़।
अनियायी के भरभस टूटय, अत्याचार के बिन्द्राबिनास
पर समाप्त बर कते तरीका, भूमि लुकाय कंद अस ज्वाप।
अपराधी शोषक परपीड़क, पापी जनअरि मनखेमार
इनकर नसना ला टोरे बर, दण्ड दीन – जीवन हर लीन।
तउन क्रांतिकारी ईश्वर बन, सब झन पास प्रतिष्ठा पैन
उनकर होत अर्चना पूजा, कवि मन लिखिन आरती गीत।
पर एकर फल करुनिकलगे, गलत राह पकड़िन इंसान
हिंसा युद्ध बढ़िस दिन दूना, शासन करिस अशांति तबाह।
जइसन करनी वइसन भरनी, पालत अगर इहिच सिद्धान्त
बम के बदला बम हा गिरिहय, राख बदल जाहय संसार।”
आगी हा जब बरत धकाधक, रोटी सेंके बर मन होत
बहल के मन होवत बोले बर, हेरत बचन धान अस ठोस-
“आग ला’ अग्नि शमन दल, रोकत, रुकत तबाही होवत शांत
तइसे नवा राह हम ढूंढन, तब संभव जग के कल्याण।”
झंझट चलत तउन अंतिम तंह, दुनों विश्वविद्यालय गीन
उहां रिहिस ढेला कवियित्री, तेकर साथ भेंट हो गीस।
ढेला उंहचे करत नौकरी, पाय प्रवक्ता पद जे उच्च
ओकर रुतबा सब ले बाहिर, लेकिन रखत कपट मं दाब।
ढेला हा मेहरुला बोलिस -”मोर नाम चर्चित सब ओर
दैनिक पत्र हा स्वीकृति देथय, कई ठक पुस्तक छपगे मोर।
दिखत दूरदर्शन मं मंय हा, मिंहिच पाठ्य पुस्तक मं छाय
देत समीक्षक मन हा इज्जत, साहित्य मं प्रकाशित नाम।”
गांव के लेखक आय बहल हा, चुपे सुनत ढेला के डींग
जतका ऊंच डींग हा जावत, उसने बहल के फइलत आंख।
जब ढेला हा उहां ले हटगिस, बहल अैेस मेहरुके पास
पूछिस -”ढेला जे उच्चारिस, ओमां कतका प्रतिशत ठीक?”
मेहरुकथय -”किहिस ढेला हा, तेन बात हा बिल्कुल ठोस
शिक्षा उच्च पाय मिहनत कर, संस्था उच्च पाय पद उच्च।
पर अचरज के तथ्य मंय राखत, जीवन पद्धति राखत खोल –
संस्था परिसर रहत रात दिन, पुस्तक संग संबंध प्रगाढ़।
अपन ला प्रतिष्ठित समझत हें, जन सामान्य ले रहिथंय दूर
उंकर पास नइ खुद के अनुभव, पर के पांव चलत हें राह।
कथा ला पढ़ के लिखत कहानी, पर के दृष्य विचार चुरात
समय हा परिवर्तित हो जावत, तेकर ले ओहर अनजान।
भूतकाल के कथा जउन हे, ओला वर्तमान लिख देत
अपन समय ला पहिचानय नइ, कहां ले लिखहीं सत्य यथार्थ!”
मेहरुबात चलावत जावत, तभे बहल ला मारिस रोक –
“जेन काम दूसर मन करथंय, उहिच काम तंय तक धर लेस।
उच्च विशिष्ट जउन मनसे हे, उंकर होत आलोचना खूब
उंकरेच बाद प्रशंसा होवत, आखिर चर्चित उंकरेच नाम।
सिंचित भूमि मं किसान मन हा, डारत बीज लान के कर्ज
उहिच भूमि मं करत किसानी, नफा होय या हो नुकसान।
भूमि कन्हार जमीन असिंचित, एला देख भगात किसान