"गरीबा / तिली पांत / पृष्ठ - 18 / नूतन प्रसाद शर्मा" के अवतरणों में अंतर
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नूतन प्रसाद शर्मा |संग्रह=गरीबा /...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 11: | पंक्ति 11: | ||
}} | }} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | फसल होय झन होय तभो ले, निष्फलता के अर्थ लगात। | |
− | + | दीन हीन लघु पद देहाती, एमन करत ठोसलग काम | |
− | + | मगर इंकर तारीफ होय नइ, निंदा तक बर आवत लाज।” | |
− | + | मेहरुबोलिस – “ठीक कहत हस, अब सवाल के उत्तर लान – | |
− | + | रिहिस रायपुर मं कई बूता, तब तंय उहां कोन दिन गेस! | |
− | + | टी। वी। अउ अकाशवाणी मं, तोर जाय के रिहिस विचार | |
− | + | उहां तोर का बूता निपटिस, होगिस का पूरा उद्देश्य?” | |
− | + | बहल किहिस – “मंय गांव मं रहिथंव, तंहू करत हस गांव निवास | |
− | + | मोर व्यथा ला तंय हा सुनबे, अतका असन रखत विश्वास- | |
− | + | हंसिया श्रमिक कमावत खेती, पर भरपेट अन्न नइ पाय | |
− | + | हम्मन गंवई मं बसथन तब तो, साहित्य मं बुझावत नाम। | |
− | + | लकर धकर मंय गेंव रायपुर, रचना धर साहित्यिक काम | |
− | + | लेकिन उहां पूछ नइ होइस, अउ उपरहा कटागे नाक। | |
− | + | मंय अकाशवाणी तिर ठाढ़े, अंदर जाय रुकत हे पांव | |
− | + | केन्द्र के रुतबा अड़बड़ होथय, तभे सुकुड़दुम मन डर्रात। | |
− | + | मोला लड्डू भृत्य हा मिलगे, उही हा देइस नेक सलाह – | |
− | + | “तंय अधिकारी तिर जा निश्चय, बात बोल मंदरस अस मीठ। | |
− | + | कहिबे -”निहू पदी दिन काटत, टीमटाम ले रहिथंव दूर | |
− | + | इहां लड़े बर नइ आए हंव, सिरिफ सधाहंव खुद के काम।” | |
− | + | कार्यालय मं पहुंच गेंव मंय, मन ला करके पक्का। | |
− | + | देख कार्यक्रम अधिधाशी हा, मारिस बात के धक्का। | |
− | + | “जनम के कोंदा अस तंय लगथस, तब बक खाके देखत मात्र | |
− | + | का विचार पहुंचे हस काबर, कुछ तो बोल भला इंसान?” | |
− | + | ऊपर ले खाल्हे तक घुरिया, साहब ढिलिस व्यंग्य के बाण | |
− | + | लेकिन मंय हा सिकुड़ खड़े बस – सांवा बीच मं कंपसत धान। | |
− | + | मंय बोलेव – “रहत हंव मंय हा, अटल गंवई हे गोदरी गांव | |
− | तब मंय | + | कृषक श्रमिक अउ गांव संबंधित, तुम्हर पास रचना ला लाय। |
− | + | पहिली भेजे हंव रचना कइ, मगर मुड़ा नइ गीस जवाब | |
− | + | तब मंय हार इहां आए हंव, मोर प्रार्थना सुन लव आप – | |
− | + | आकाशवाणी ले चाहत हंव, अपन नाम सब तन बगराय | |
− | + | बिन प्रचार उदगरना मुस्कुल, करिहव कृपा मथत मंय आय।” | |
− | + | साहब हा बरनिया के बोलिस -”कान टेंड़ सुन सही सलाह | |
− | + | लेखक लइक तोर नइ थोथना, दरपन देख लगा ले थाह। | |
− | + | सांगर मोंगर अड़िल युवक हस, गांव लहुट के नांगर जोंत | |
− | + | काम असादी के बदला मं, श्रम करके झड़ गांकर रोंठ।” | |
− | + | हंसिस कार्यक्रम अधिधाशी हा, पर मंय मानेव कहां खराब! | |
− | + | गोड़ तरी मोंगरा खुतलाथय, तब ले ओहर देत सुगंध। | |
− | + | मंय बोलेंव – “नम्र बोलत हंव, पर तुम उल्टा मारत लात | |
− | + | मंहू आदमी आंव तुम्हर अस, पाप करे नइ रहि देहात। | |
− | + | बिगर पलोंदी बेल बढ़य नइ, ना बिन खम्हिया उपर मचान | |
− | + | धर आसरा इहां आए हंव, पर खिसिया के बेधत बान। | |
− | + | कवि उमेंदसिंग बसय करेला, जेन लड़िस गोरा मन साथ | |
− | पर | + | जन जागृति मं जीवन अर्पित, ओकर नाम कहां हे आज? |
− | + | जयशंकर प्रेमचंद निराला, इंकर अमर अंतिम तक नाम | |
− | + | पर उमेंद ला कोन हा जानत, ओकर रचना गिस यम धाम। | |
− | + | छिदिर बिदिर होगे सब रचना, एकोझन नइ रखिन सम्हाल | |
− | + | ओकर पुस्तक छप नइ पाइस, तब का जानंय बाल गोपाल!” | |
− | + | मोर कथा ला साहब सुन लिस, भड़क गीस आंखी कर लाल – | |
− | + | “तोर असन कतरो लेखक ला, मंय हा रखत दाब के कांख। | |
− | + | हगरुपदरुलेखक बनथव, कोन कमाहय बरसा धाम | |
− | + | गांव लहुट के काम बजा तंय, लेख जाय यमराज के धाम। | |
− | + | छोड़ लफरही निकल इहां ले भड़कत मोर मइन्ता। | |
− | + | वरना बुढ़ना ला झर्राहंव, करिहंव तोर हइन्ता। | |
− | + | साहब ला गिनगिन के पत लिस, पर मंय बायबिरिंग ना क्लान्त | |
− | + | बिच्छी हा चटपट झड़काथय, मर्थे व्यक्ति रहि जाथय शांत। | |
− | + | मंय हा उहां ले हट के आएंव – गेंव उबली के पान दुकान | |
− | + | जहां बात के परिस अभेड़ा, उबली लग गिस सत्य बतान। | |
− | + | ओहर किहिस – “आय हस हंफरत, लेकिन व्यर्थ जात सब खर्च। | |
− | + | साहब मन टेंड़ुंवा गोठियाथंय, आंजत आँख व्यंग्य के मिर्च। | |
− | + | राजबजन्त्री राई दोहाई, अस तस पर देवंय नइ ध्यान | |
− | + | इंकर साथ परिचय अउ बइठक, बस ओमन पाथंय अस्थान। | |
− | + | हम्मन इही पास मं रहिथन, जानत साहब मन के पोल | |
− | + | ओमन चाय पान बर आथंय, आपुस मं गोठियाथंय खोल।” | |
− | + | ओतकी मं बोलिस ट्रांजिस्टर, सुघर ददरिया झड़के बाद – | |
− | + | दानी के कहना ला सुन लव, जे मनसे के जतका साद। | |
− | + | कृषक बसुन्दरा मांईलोगन, बंद करव तुम चिर्री गाज | |
− | + | रचना के नामे ला सुन लव – गांव गंवई के रीति रिवाज। | |
− | + | उबली जे ठौंका ला बोलिस, ओकर मंय पा लेंव प्रमाण | |
− | + | दानी के रचना हा स्वीकृत, मंय हा क्रूर शब्द भर पाय।” | |
− | + | एकर बाद बहल अउ बोलिस – “दानी करथय नगर निवास | |
− | + | जमों क्षेत्र मं पात सफलता, चढ़े हवय साहित्यकाश। | |
− | + | लेकिन हम तुम गांव मं रहिथन, ते कारन हम जावत गर्त | |
− | + | हमर लेख मन बिगर पुछन्ता, हारत हन साहित्यिक शर्त।” | |
− | + | मेहरुकथय – ठीक बोलत हस, होत शहर साधन सम्पन्न | |
− | + | टी। वी। रेडियो पत्र प्रकाशन, संघ समीक्षक नाम इनाम। | |
− | + | उहां के लेखक चर्चित होथय, जुड़त पाठ्य पुस्तक मं नाम | |
− | + | लेखक श्रेष्ठ कहात उही मन, होत प्रशंसित उंकरेच नाम। | |
− | + | लेकिन एकर ए मतलब नइ, हम्मन छोड़ देन फट गांव | |
− | + | कर्म करत हम मांग ला राखन, उहू कर्म हो प्रतिभावान। | |
+ | न्यायालय मं जइसन होथय, घुरुवा मन पर आइस कष्ट | ||
+ | उंकर कथा ला काव्य बनावत, होय असच के टायर भस्ट। | ||
</poem> | </poem> |
16:46, 7 जनवरी 2017 के समय का अवतरण
फसल होय झन होय तभो ले, निष्फलता के अर्थ लगात।
दीन हीन लघु पद देहाती, एमन करत ठोसलग काम
मगर इंकर तारीफ होय नइ, निंदा तक बर आवत लाज।”
मेहरुबोलिस – “ठीक कहत हस, अब सवाल के उत्तर लान –
रिहिस रायपुर मं कई बूता, तब तंय उहां कोन दिन गेस!
टी। वी। अउ अकाशवाणी मं, तोर जाय के रिहिस विचार
उहां तोर का बूता निपटिस, होगिस का पूरा उद्देश्य?”
बहल किहिस – “मंय गांव मं रहिथंव, तंहू करत हस गांव निवास
मोर व्यथा ला तंय हा सुनबे, अतका असन रखत विश्वास-
हंसिया श्रमिक कमावत खेती, पर भरपेट अन्न नइ पाय
हम्मन गंवई मं बसथन तब तो, साहित्य मं बुझावत नाम।
लकर धकर मंय गेंव रायपुर, रचना धर साहित्यिक काम
लेकिन उहां पूछ नइ होइस, अउ उपरहा कटागे नाक।
मंय अकाशवाणी तिर ठाढ़े, अंदर जाय रुकत हे पांव
केन्द्र के रुतबा अड़बड़ होथय, तभे सुकुड़दुम मन डर्रात।
मोला लड्डू भृत्य हा मिलगे, उही हा देइस नेक सलाह –
“तंय अधिकारी तिर जा निश्चय, बात बोल मंदरस अस मीठ।
कहिबे -”निहू पदी दिन काटत, टीमटाम ले रहिथंव दूर
इहां लड़े बर नइ आए हंव, सिरिफ सधाहंव खुद के काम।”
कार्यालय मं पहुंच गेंव मंय, मन ला करके पक्का।
देख कार्यक्रम अधिधाशी हा, मारिस बात के धक्का।
“जनम के कोंदा अस तंय लगथस, तब बक खाके देखत मात्र
का विचार पहुंचे हस काबर, कुछ तो बोल भला इंसान?”
ऊपर ले खाल्हे तक घुरिया, साहब ढिलिस व्यंग्य के बाण
लेकिन मंय हा सिकुड़ खड़े बस – सांवा बीच मं कंपसत धान।
मंय बोलेव – “रहत हंव मंय हा, अटल गंवई हे गोदरी गांव
कृषक श्रमिक अउ गांव संबंधित, तुम्हर पास रचना ला लाय।
पहिली भेजे हंव रचना कइ, मगर मुड़ा नइ गीस जवाब
तब मंय हार इहां आए हंव, मोर प्रार्थना सुन लव आप –
आकाशवाणी ले चाहत हंव, अपन नाम सब तन बगराय
बिन प्रचार उदगरना मुस्कुल, करिहव कृपा मथत मंय आय।”
साहब हा बरनिया के बोलिस -”कान टेंड़ सुन सही सलाह
लेखक लइक तोर नइ थोथना, दरपन देख लगा ले थाह।
सांगर मोंगर अड़िल युवक हस, गांव लहुट के नांगर जोंत
काम असादी के बदला मं, श्रम करके झड़ गांकर रोंठ।”
हंसिस कार्यक्रम अधिधाशी हा, पर मंय मानेव कहां खराब!
गोड़ तरी मोंगरा खुतलाथय, तब ले ओहर देत सुगंध।
मंय बोलेंव – “नम्र बोलत हंव, पर तुम उल्टा मारत लात
मंहू आदमी आंव तुम्हर अस, पाप करे नइ रहि देहात।
बिगर पलोंदी बेल बढ़य नइ, ना बिन खम्हिया उपर मचान
धर आसरा इहां आए हंव, पर खिसिया के बेधत बान।
कवि उमेंदसिंग बसय करेला, जेन लड़िस गोरा मन साथ
जन जागृति मं जीवन अर्पित, ओकर नाम कहां हे आज?
जयशंकर प्रेमचंद निराला, इंकर अमर अंतिम तक नाम
पर उमेंद ला कोन हा जानत, ओकर रचना गिस यम धाम।
छिदिर बिदिर होगे सब रचना, एकोझन नइ रखिन सम्हाल
ओकर पुस्तक छप नइ पाइस, तब का जानंय बाल गोपाल!”
मोर कथा ला साहब सुन लिस, भड़क गीस आंखी कर लाल –
“तोर असन कतरो लेखक ला, मंय हा रखत दाब के कांख।
हगरुपदरुलेखक बनथव, कोन कमाहय बरसा धाम
गांव लहुट के काम बजा तंय, लेख जाय यमराज के धाम।
छोड़ लफरही निकल इहां ले भड़कत मोर मइन्ता।
वरना बुढ़ना ला झर्राहंव, करिहंव तोर हइन्ता।
साहब ला गिनगिन के पत लिस, पर मंय बायबिरिंग ना क्लान्त
बिच्छी हा चटपट झड़काथय, मर्थे व्यक्ति रहि जाथय शांत।
मंय हा उहां ले हट के आएंव – गेंव उबली के पान दुकान
जहां बात के परिस अभेड़ा, उबली लग गिस सत्य बतान।
ओहर किहिस – “आय हस हंफरत, लेकिन व्यर्थ जात सब खर्च।
साहब मन टेंड़ुंवा गोठियाथंय, आंजत आँख व्यंग्य के मिर्च।
राजबजन्त्री राई दोहाई, अस तस पर देवंय नइ ध्यान
इंकर साथ परिचय अउ बइठक, बस ओमन पाथंय अस्थान।
हम्मन इही पास मं रहिथन, जानत साहब मन के पोल
ओमन चाय पान बर आथंय, आपुस मं गोठियाथंय खोल।”
ओतकी मं बोलिस ट्रांजिस्टर, सुघर ददरिया झड़के बाद –
दानी के कहना ला सुन लव, जे मनसे के जतका साद।
कृषक बसुन्दरा मांईलोगन, बंद करव तुम चिर्री गाज
रचना के नामे ला सुन लव – गांव गंवई के रीति रिवाज।
उबली जे ठौंका ला बोलिस, ओकर मंय पा लेंव प्रमाण
दानी के रचना हा स्वीकृत, मंय हा क्रूर शब्द भर पाय।”
एकर बाद बहल अउ बोलिस – “दानी करथय नगर निवास
जमों क्षेत्र मं पात सफलता, चढ़े हवय साहित्यकाश।
लेकिन हम तुम गांव मं रहिथन, ते कारन हम जावत गर्त
हमर लेख मन बिगर पुछन्ता, हारत हन साहित्यिक शर्त।”
मेहरुकथय – ठीक बोलत हस, होत शहर साधन सम्पन्न
टी। वी। रेडियो पत्र प्रकाशन, संघ समीक्षक नाम इनाम।
उहां के लेखक चर्चित होथय, जुड़त पाठ्य पुस्तक मं नाम
लेखक श्रेष्ठ कहात उही मन, होत प्रशंसित उंकरेच नाम।
लेकिन एकर ए मतलब नइ, हम्मन छोड़ देन फट गांव
कर्म करत हम मांग ला राखन, उहू कर्म हो प्रतिभावान।
न्यायालय मं जइसन होथय, घुरुवा मन पर आइस कष्ट
उंकर कथा ला काव्य बनावत, होय असच के टायर भस्ट।