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"कभी वतन से अपने दूर नहीं हो पाया / डी.एम.मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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16:13, 9 जनवरी 2017 का अवतरण

कभी वतन से अपने दूर नहीं हो पाया
ग़म नहीं है कि मैं मशहूर नहीं हो पाया।

लगा रहा सँवारने में बगीचा यारो
फल लपक लेने का शऊर नहीं हो पाया।

लोग पाते न पार शब्दजाल बुन देता
मुझसे कविता में वो फ़ितूर नहीं हो पाया।

लोग मुझको भी बड़ा आदमी कहने लगते
ऐंठ कर बोलता मगरूर नहीं हो पाया।

मैंने भेजा तो कई बार मौत का परचा
ख़ुदा के घर अभी मंजूर नहीं हो पाया।

सुर-असुर दोनों की पसन्द मैं कैसे बनता
बन गया नारियल, अंगूर नहीं हो पाया।