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"जूते मजबूत कर लो / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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16:34, 9 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

पहले अपने जूते मजबूत कर लो
फिर सड़क पर आना
इन सड़कों पर
जिन्दगी की गाड़ी
बेतरतीब बोझों से लदीफँदी
कौन घेाड़ा खींच सकता है
बिना एड़ी में नाल ठुकवाये

इंजीनियरों और ठेकेदारों को छोड़िये
अब तो बेलदार भी
अपनी जानकारी में
सड़कों के साथ न्याय नहीं करता
इन सड़कों के कूबड़ तो देखिये
कौन माई का लाल
नंगे पाँव इन पर
चल सकता है

पगडंडियों पर धूल उड़ती थी
वह ठीक थी
पर, इन राजमार्गों की आँखों से
बहते गर्म अलकतरे पर
नंगे पैर ऐसे पड़ते हैं
जैसे गर्म तवे पर
पानी की बूँदें

पगडंडियों तब भी ठीक थीं
गिरने पर फूटने - फाटने
का भय नहीं था
पर, ये झाँवे और खड़ंजे की सड़कें
पैरों के तलवे
लहूलुहान कर देती हैं

मेरे दोस्त
अब वह ज़माना भूल जाओ
जब हमारे-तुम्हारे दादा -परदादा
अपनी ससुराल जाते हुए
पनही लाठी में टाँग कर ले जाते थे
गाँव की चौहद्दी में पहुँचते थे
तब कहीं पहनते थे पनही
उस समय पनही
दिखावटी होती थी
पर, आज के युग में
छोटा -सा - छोटा काम भी बनाने के लिए
हाथ में जूता लेना पड़ता है