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"तो अजमल को समझे / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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प्रथम बार जो पढ़े गये वो कवि रफ़ीक़ सादानी
 
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‘युगतेवर’ ने ताबिश पर, मजरूह पे अंक निकाला
 
‘युगतेवर’ ने ताबिश पर, मजरूह पे अंक निकाला

16:56, 9 जनवरी 2017 का अवतरण

जैसे कोई पुण्य आत्मा गंगाजल को समझे
जैसे कोई तालतलैया झील कमल को समझे
जैसे कोई आने वाले अपने कल को समझे
वैसे कोई कमलनयन हो तो अजमल को समझे।

सही परख हीरे की जैसे एक जौहरी करता
शंख-सीप के बीच से जैसे कोई मोती चुनता
कारीगर ईंटो से जैसे महल खड़ा कर देता
छोटे- छोटे अणु को छूकर बहुत बड़ा कर देता।

साथ हवा का पाकर ज़र्रे गगन को छूने लगते
सुस्त पड़े रहते हैं जो वो वेग से उड़ने लगते
अहंकार से कौन बढ़ा है कोई मुझे बता दे
छोटी -सी पतवार एक तरणी को पार लगा दे।

जहाँ सृजन की थेाड़ी भी उम्मीद नजर आती है
‘युगतेवर’ की दृष्टि वहाँ पर शीघ्र पहुँच जाती है
‘युगतेवर’ ने लोकनिष्ठ कवियों का मान बढ़ाया
भाषा के विस्तार के लिए ऊँचा मंच बनाया।

मानबहादुर की कविता, उन्मत्त की अवधी बानी
प्रथम बार जो पढ़े गये वो कवि रफ़ीक़ सादानी
‘युगतेवर’ ने ताबिश पर, मजरूह पे अंक निकाला
कभी त्रिलोचन, भी जायसी का भी काव्य खॅगाला।

इसी श्रृंखला में आयी है अब अजमल की बारी
बड़े- बड़े रचनाकारों पर जो पड़ते हैं भारी
यों तो अजमल की दीवानी इक जमात है पूरी
पर, ‘युगतेवर’ को लगती कुछ बात जो अभी अधूरी।

अजमल जैसा कवि-शायर तो युगों में पैदा होता
भावभूमि पर जो भाषा के बीज अनोखे बोता
हरी - भरी हो उठती है जिसके नग़मों से धरती
सेाने -चाँदी की फ़सलों से पट जाती है परती।

कद्रदान जो अभी तलक मंचों से उनको जानें
उनके मीठे सुर सेउनके जादू को पहचानें
दो नज़्में सुनकर उनकी संतोष कर लिया करते
‘ताजमहल’ या ‘मेरा हिन्दुस्तान’ पे जान छिड़कते।

महफ़िल की सीमाओं में जो बाँध रहे अजमल को
या मुशायरों का शायर जो आँक रहे अजमल को
उन्हें चाहिए वो उनके पूरे कलाम को देखें
बड़ी-बड़ी ग़ज़लें उनकी ऊँचे कलाम को देखें।

देखें ‘नग़माते अजमल’, ‘जज़बाते अजमल’ देखें
‘खुर्शीदे’, ‘मेहमाने अर्श’, कि ‘नूरे मुजस्सिम’ देखें
देखें ‘ रूहे कायनात’, ‘परचमे नूर’ और ‘झुरमुट’भी
देखें और क़िताबें उनकी कुछ ग़ज़लें छिटपुट भी।

‘लवें’ पढ़ेंगे तो देखेंगे अल्फ़ाजों की दौलत
तब समझेंगे क्या होती है एहसासों की क़ीमत
लिखने-पढ़ने वालों से है मेरी एक गुज़ारिश
उन्हें समग्रता में देखें बस इतनी मेरी ख़्वाहिश।

उनकी ग़ज़लों, नग़मों का मेयार देखिये पहले
नर्म-नर्म लफ़्जों की तीखी धार देखिये पहले
हुस्न-इश्क तक सीमित नहीं हैं बहुत बड़ी हैं ग़ज़लें
सूफ़ीवाद और दर्शन से भी भरी पड़ी हैं ग़ज़लें।

यों लगता है ख़ुदा ने उनको अलग से न्यामत दी है
महफ़िल पर छा जाने की जो अद्भुत ताक़त दी है
हर कवि-शायर यही सोचता अजमल कैसे लिखते
शब्द हथेली पर ही क्या सब क्रम से रक्खे रहते।

हिन्दी हो या उर्दू हो पर, कौन है उनका सानी
भेाजपुरी हो या देहाती या हो अवधी बानी
हिन्दी के मर्मज्ञ हैं तो उर्दू ज़बान के आलिम
ख़ुद को मगर मानते हैं वो इक मामूली ख़ादिम।

क्हने को हिन्दू-मुस्लिम दोनों का प्यार हैं अजमल
फिर क्यों हासिल नहीं हुआ जिसके हक़दार हैं अजमल
छोटी -सी अपनी दुनिया में भी खुशहाल हैं अजमल
धन -दौलत की कभी है फिर भी मालामाल हैं अजमल।

सादा लिबास सर पर पगड़ी पहचान है अजमल की
पर, सच पूछो तो यही सरलता शान है अजमल की
हर पल उनके चेहरे पर मुस्कान खेलती रहती
अगर वो चुप रहते हैं तो भी दुआ बोलती रहती।

लोक लुभावन भले नहीं पर, मनभावन हैं अजमल
भजन - कीर्तन, नात की तरह अति पावन हैं अजमल
ख़ुदा करे उनका यश फैले कायनात में पूरी
बस, अजमल ही अजमल गूँजे कायनात में पूरी।