भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इही जिनगानी रे / मिलन मलरिहा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मिलन मलरिहा |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} {{KKCatChhattisga...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:17, 18 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

मान ले तै मान मलरिहा, इही जिनगानी रे।
जान ले तै जान ले मनवा, इही हमर कहानी रे।

माई-पिल्ला रोज कमाथन, खेतीखार बारी पलोथन।
तरिया तीर खड़ेहे टेड़ा, डुमत डुमत होगे बेरा।
जिनगी ह पहावत इसने, बड़ लागा बाढ़ी रे।

मिरचा धनिया भाटा गोभी, करेला कुन्दरु अउहे लौकी।
रमकेलिया खड़े बिन संसो, तरोई नार बगरे हे लंझो।
भाव निच्चट गिर जाथे ग, निकलथे साग हमर बारी रे।

पढ़-लिख के निनासतहे बेटा, खेतीखार बारी बरछा।
कुदरी-गैती नई सुहावय, बुता बनी ब ओहा लजावय।
कोनो अब कहा तै पाबे, पढ़े-लिखे मेड़ बंधानी रे।

बादर ह दुरिहावत हावय, पानी घलो अब नई माड़य।
खेत-खार कलपत रोवत, मनखे ल बतावत हावय।
अतेक बिकासे का कामके, जरगे जंगल-झारी रे।