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चरागाह सूखा है
 
निश्चिंत हैं हाकिम-हुक्काम
 
नियति मान
 
चुप हैं चरवाहे
 
मेघ नहीं घिरे
 
बरखा आई, गई
 
पशु विवश हैं
 
मुँह मारने को
 
किसी की खड़ी फसल में
 
हँस रहे हैं
 
आकाश में इन्द्र देव