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"जीने का सामान / योगेंद्र कृष्णा" के अवतरणों में अंतर

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12:22, 30 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

इतना भी आसान नहीं
कचरे से जीने का
कुछ सामान निकल पाना

और इस तरह
सभ्य आदमी कुत्तों और गिद्धों
की दृष्टि से बच कर निकल जाना

कितना कठिन है
हरियाली के भीतर छुपे
सांप बिच्छुओं को समझाना

इससे भी कठिन है
लेकिन...
भूख से सुलह कर पाना