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"पृथ्वी का आकाश / योगेंद्र कृष्णा" के अवतरणों में अंतर
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विकास के नए उपकरणों को
आदमी इस पृथ्वी पर
जब-जब सजाता है
और अपनी
उपलब्धियों का उत्सव
जब पूरे विश्व में मनाता है
स्वयं आदमी के लिए ही
क्यों इस पृथ्वी का
आकाश सिकुड़ जाता है...