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"ग़ैब की भाषा / योगेंद्र कृष्णा" के अवतरणों में अंतर

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14:09, 30 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

अचानक ही उतरता हो
तुम्हारे आंगन में
अजनबी कोई परिंदा
और सहज स्वीकार कर लेता हो
तुम्हारे हाथ का दाना-पानी

तो समझ लो
कि समझ में आने लगी है
अब तुम्हें भी
ग़ैब की भाषा…