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"दफ़्तर से विदाई / योगेंद्र कृष्णा" के अवतरणों में अंतर
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इतनी आसानी से
नहीं हो जाता कोई विदा
वह थोड़ा-थोड़ा
जरूर रह जाता है
तुम्हारे साथ
अदृश्य और निराकार
और तुम भी
थोड़ा ही सही
चले जाते हो
दूर तलक साथ-साथ उसके
जो हुआ है
अभी-अभी तुमसे विदा...