भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आरज़ू / विजय कुमार विद्रोही" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय कुमार विद्रोही |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 33: | पंक्ति 33: | ||
दबी | दबी | ||
थी | थी | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
(3) | (3) |
12:45, 14 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण
(1)
तू
तब
कहाँ थी
जिस घड़ी
जलधार से
तकियों को मैंने
तर बतर
करके भी
सपने
थामे
थे
(2)
थे
तब
कहाँ पे
ये विरह
जब प्राण को
मेरे जकड़ के
अधर मौन
वचन ले
भीतर
दबी
थी
(3)
थी
वही
मिलन
आशा मेरी
बंदूक गोली
बम धमाकों के
गर्वित नाद
सुन मिले
असीम
सुख
की
(4)
की
मैंने
प्रार्थना
भगवान
इस धरा पे
शत्रु पद चिन्ह
कभी ना दिखें
इतनी सी
अरज
मान
तू