भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उसके सपने / रति सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रति सक्सेना }} उससे कहा गया सपने देखो उसने तमाम कोशिश ...)
(कोई अंतर नहीं)

23:49, 19 मई 2008 का अवतरण

उससे कहा गया

सपने देखो

उसने तमाम कोशिश की

सपने देखने की

हर बार दिखा ढेर से भात पर

मछली का टुकड़ा


उससे कहा गया

सपने ऊँचे होने चाहिए

उसके सपने में

भात का ढेर ऊँचा होता गया

मछली का टुकड़ा बड़ा


उससे फिर कहा गया

"जैसा सपना देखोगे वैसा बनोगे"

उसके सामने सवाल था

भात बने या मछली का टुकड़ा


उसने सोचा भात से

कुनबे की भूख मिट जाएगी

मछली कोई भी फाँस सकता है


वह सपनो को भुला

भात की जुगाड़ में लग गया।