भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रसोई की पनाह / रति सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रति सक्सेना }} जब भी मेरा आसमान मेरी हथेली में भिंच चिप...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
00:32, 20 मई 2008 का अवतरण
जब भी मेरा आसमान
मेरी हथेली में भिंच
चिपचिपाने लगता है
मेरा आसपास
अनजाना बन मंडराने लगता है
मैं भागती हूँ
रसोई की पनाह में
कट-कट कटती जाती हैं
लौकी, गाजर, भिंडियाँ
बिना किसी शिकायत के
फिर चढ़ जाती हैं आग पर
मेरी ऐवज
मैं फिर से तैयार हो जाती हूँ
परोसी जाने के लिए