"अश्वत्थामाहरू / रमेश क्षितिज" के अवतरणों में अंतर
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नफर्किने गरी खोसिएको छ बहुमूल्य मणि | नफर्किने गरी खोसिएको छ बहुमूल्य मणि |
08:16, 16 मार्च 2017 के समय का अवतरण
बाटो–दोबाटोमा
हिँडिरहेका छन् चिरञ्जीवी अश्वत्थामाहरू
आ–आफ्नै घाउ बोकेर,
कतै बदाम चपाउँदै बिसौनीमा
खेतमा–बारीमा
कतै पसिना चुहाउँदै विश्वविद्यालयमा,
काला अश्वत्थामाहरू कहीँ
गोरा अश्वत्थामाहरू
गिर्जाघरनेर,
स्तुप सामुन्ने,
कतै मन्दिरमा, कतै गुम्बामा
यत्रतत्र भीड छ सधै अश्वत्थामाहरूको,
नफर्किने गरी खोसिएको छ बहुमूल्य मणि
अश्वत्थामाहरू
कतै घाउ बोकेर शिरमा
कतै चोट सहेर मनमा
कोही देशका लागि
कोही आफन्त र आफ्ना लागि
कोही सम्पूर्ण मान्छेका लागि
आहत छन्
पीडामग्न छन् अश्वत्थामाहरू !
आउँछ शिशिर
र नंग्याएर जान्छ वृक्षहरू
झर्छन् पुराना पात र पलाउँछन् नयाँ मुना
शताब्दीयांैसम्म दीर्घजीवी छन् तर
अमर्त्य अश्वत्थामाहरू – कहिल्यै मर्दैनन्
र खाटा बस्दैन पुरानो घाउ,
कति बुद्ध आएर गए
दुःखको दर्शनमा हराएकै छ मोक्षको अध्याय
बरु एउटा अश्वत्थामा आउँछ
र जन्माएर जान्छ आफूजस्ता
धेरै अश्वत्थामाहरू,
संसारभरि
कुना–कुनामा
विचरण गर्दैछन् अश्वत्थामाहरू
मन्दिरमा, गुम्बामा
कतै बाटो–दोबाटोमा !