"वो जो हम में तुम में क़रार था / मोमिन" के अवतरणों में अंतर
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोमिन खाँ 'मोमिन' }} Category:ग़ज़ल <poem>वो जो हम में तुम...) |
|||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
[[Category:ग़ज़ल]] | [[Category:ग़ज़ल]] | ||
<poem>वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो के न याद हो| | <poem>वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो के न याद हो| | ||
− | वही यानी वादा | + | वही यानी वादा निभाने का तुम्हें याद हो के न याद हो| |
वो नये गिले वो शिकायतें वो मज़े मज़े की हिकायतें, | वो नये गिले वो शिकायतें वो मज़े मज़े की हिकायतें, |
21:03, 16 मार्च 2017 के समय का अवतरण
वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो के न याद हो|
वही यानी वादा निभाने का तुम्हें याद हो के न याद हो|
वो नये गिले वो शिकायतें वो मज़े मज़े की हिकायतें,
वो हर एक बात पे रूठना तुम्हें याद हो के न याद हो|
कोई बात ऐसी अगर हुई जो तुम्हारे जी को बुरी लगी,
तो बयाँ से पहले ही भूलना तुम्हें याद हो के न याद हो|
सुनो ज़िक्र है कई साल का, कोई वादा मुझ से था आप का,
वो निभाने का तो ज़िक्र क्या, तुम्हें याद हो के न याद हो|
कभी हम में तुम में भी चाह थी, कभी हम से तुम से भी राह थी,
कभी हम भी तुम भी थे आश्ना, तुम्हें याद हो के न याद हो|
हुए इत्तेफ़ाक़ से गर बहम, वो वफ़ा जताने को दम-ब-दम,
गिला-ए-मलामत-ए-अर्क़बा, तुम्हें याद हो के न याद हो|
वो जो लुत्फ़ मुझ पे थे बेश्तर, वो करम के हाथ मेरे हाथ पर,
मुझे सब हैं याद ज़रा ज़रा, तुम्हें याद नो कि न याद हो|
कभी बैठे सब हैं जो रू-ब-रू तो इशारतों ही से गुफ़्तगू,
वो बयान शौक़ का बरमला तुम्हें याद हो कि न याद हो|
वो बिगड़ना वस्ल की रात का, वो न मानना किसी बात का,
वो नहीं नहीं की हर आन अदा, तुम्हें याद हो कि न याद हो|
जिसे आप गिनते थे आश्ना जिसे आप कहते थे बावफ़ा,
मैं वही हूँ "मोमिन"-ए-मुब्तला तुम्हें याद हो के न याद हो|