भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सपने जैसा लगता है / विजय वाते" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय वाते |संग्रह= दो मिसरे / विजय वाते }} वो तो सुबह से स...) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
}} | }} | ||
− | वो तो सुबह से सपने जैसा लगता है| | + | वो तो सुबह से सपने जैसा लगता है| <br> |
− | पहला प्यार हमेशा सच्चा लगता है| | + | पहला प्यार हमेशा सच्चा लगता है|<br><br> |
− | जैसे पीले पत्ते झरते आँगन में, | + | जैसे पीले पत्ते झरते आँगन में, <br> |
− | वैसे वो भी उखड़ा-उखड़ा लगता है| | + | वैसे वो भी उखड़ा-उखड़ा लगता है|<br><br> |
− | नाच दिखाने तौल रहा जो पर अपने, | + | नाच दिखाने तौल रहा जो पर अपने,<br> |
− | मोर कहीं वो रोया-रोया लगता है| | + | मोर कहीं वो रोया-रोया लगता है|<br><br> |
− | उसकी बातें और करो कुछ और कहो, | + | उसकी बातें और करो कुछ और कहो,<br> |
− | उसके किस्से सुनना अछ्छा लगता है| | + | उसके किस्से सुनना अछ्छा लगता है|<br><br> |
− | इश्क, अदावत, खुशबू, पीड़ा,हँसी, छुअन, | + | इश्क, अदावत, खुशबू, पीड़ा,हँसी, छुअन,<br> |
− | बे चहरों के चहरे जैसा लगता है| | + | बे चहरों के चहरे जैसा लगता है|<br><br> |
− | दिल वाले महसूस करेंगे इसे "विजय", | + | दिल वाले महसूस करेंगे इसे "विजय",<br> |
− | शेर ग़ज़ल का दिल का हिस्सा लगता है| | + | शेर ग़ज़ल का दिल का हिस्सा लगता है|<br><br> |
09:10, 26 मई 2008 का अवतरण
वो तो सुबह से सपने जैसा लगता है|
पहला प्यार हमेशा सच्चा लगता है|
जैसे पीले पत्ते झरते आँगन में,
वैसे वो भी उखड़ा-उखड़ा लगता है|
नाच दिखाने तौल रहा जो पर अपने,
मोर कहीं वो रोया-रोया लगता है|
उसकी बातें और करो कुछ और कहो,
उसके किस्से सुनना अछ्छा लगता है|
इश्क, अदावत, खुशबू, पीड़ा,हँसी, छुअन,
बे चहरों के चहरे जैसा लगता है|
दिल वाले महसूस करेंगे इसे "विजय",
शेर ग़ज़ल का दिल का हिस्सा लगता है|