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"कथाओं से भरे इस देश में / केदारनाथ सिंह" के अवतरणों में अंतर

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08:45, 29 मई 2008 के समय का अवतरण

कथाओं से भरे इस देश में
मैं भी एक कथा हूँ
एक कथा है बाघ भी
इसलिए कई बार
जब उसे छिपने को नहीं मिलती
कोई ठीक-ठाक जगह
तो वह धीरे से उठता है
और जाकर बैठ जाता है
किसी कथा की ओट में

फिर चाहे जितना ढूँढ़ो
चाहे छान डालो जंगल की पत्ती-पत्ती
वह कहीं मिलता ही नहीं है
बेचारा भैंसा
साँझ से सुबह तक
चुपचाप बँधा रहता है
एक पतली-सी जल की रस्सी के सहारे
और बाघ है कि उसे प्यास लगती ही नहीं
कि वह आता ही नहीं है
कई कई दिनों तक
जल में छूटू हुई
अपनी लंबी शानदार परछाईं को देखने

और जब राजा आता है
और जंगल में पड़ता है हाँका
और तान ली जाती हैं सारी बँदूकें
उस तरफ़
जिधर हो सकता है बाघ
तो यह सचाई है
कि उस समय बाघ
यहाँ होता है न वहाँ
वह अपने शिकार का ख़ून
पी चुकने के बाद
आराम से बैठा होता है
किसी कथा की ओट में !