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चाँदनी खेल रही होली
किरणों की पिचकारी भर कर
छोड़ रही तम-कृष्ण वदन पर
दिशि-दिशि रंग-अबीर रहा भर
नीली नभ-यमुना-पुलिनों पर राधा-सी भोली
नाच रही घन कुंजों में फिर
सिर ले शशि की कलशी अस्थिर
टूट रजत कुमकुमे रहे गिर
घूम-घूम कर ताल दे रही तारों की टोली
नव कदम्ब-कानन में भटकी
चली धरे व्रज्या पनघट की
बिखर रही रँग -रोली पट की
साधों से भर रही फैल कर नयनों की झोली
चाँदनी खेल रही होली