भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ट्विटर कविताएँ / मंगलमूर्ति

1,132 bytes added, 14:14, 27 अप्रैल 2017
{{KKCatKavita}}
<poem>
१.
मैं हारा नहीं हूँ
थक गया हूँ
यह गहरी थकावट
मुझे हराना चाहती है
पर मैं हारूँगा नहीं
हारेगी मेरी थकावट
क्योंकि मैं कभी हारा नहीं
और न हारूँगा
 
२.
घड़ी पहनता हूँ
पर देखता हूँ कम
क्योंकि वक्त तो यों भी
सवार रहता है
बैताल की तरह पीठ पर
और धड़कता रहता है
दिल में घड़ी की ही तरह
धक-धक-धक-धक!
 
३.
सूरज डूबा
या मैं डूबा
अंधकार में
सूरज तो उबरेगा
नये प्रकाश में
डूबेगी धरती
नाचती निज धुरी पर
मुझको लिए-दिए
गहरे व्योम में ढूंढती
उस सूरज को
 
४.
बिंदी
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,103
edits