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"चार शेर / शमशेर बहादुर सिंह" के अवतरणों में अंतर

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'''(जो एक शादी के मौक़े पर कहे गए)
 
  
  
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और काफ़िले-दर्द पर आपका दौलते-शरीफ़
 
और काफ़िले-दर्द पर आपका दौलते-शरीफ़
  
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भूल गए हम मगर क़ौलो-क़रार याद है
  
फिर शोरे-अनादिल है, फिर गुंचे परीशाँ हैं :
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आह ज़माना भी है कुछ आप ही नहीं सितम ज़रीफ़
 
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ए बादे-सबा, लेकर क्या नामए-यार आई?
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हर एक शगूफ़ा यह कहता हुआ खिलता है।
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"शायद कि बहार आई! शायद कि बहार आई!"
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(1945)
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(1955 में रचित)

19:11, 1 जून 2008 का अवतरण


देख की अपनी बेक़सी किसलिए जी में हो खफ़ीफ़

मूनिस हमनवाँ मेरे बेहरो-क़वाफ़ियो-रदीफ़


आज वो हो चुका जो था आपका आशिक़ नज़ार

दौरे-जहाँ से उठ गया हुस्न का परतव लतीफ़


देखना दर पे कौन अभी देता हुआ सदा गया

और काफ़िले-दर्द पर आपका दौलते-शरीफ़

भूल गए हम मगर क़ौलो-क़रार याद है

आह ज़माना भी है कुछ आप ही नहीं सितम ज़रीफ़

(1955 में रचित)