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"याचना / रघुवीर सहाय" के अवतरणों में अंतर
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20:38, 2 जून 2008 का अवतरण
युक्ति के सारे नियंत्रण तोड़ डाले,
मुक्ति के कारण नियम सब छोड़ डाले,
अब तुम्हारे बंधनों की कामना है|
विरह यामिनी मी न पल भर नींद आयी,
क्यों मिलन के पात वह नैनों समायी,
एक क्षण में ही तो मिलन मी जागना है|
यह अभागा प्यार ही यदि है भुलाना,
तो विरह के वे कठिन क्षण भूल जाना,
हाय जिनका भूलना मुझको मना है |
मुक्त हो उच्छ्वास अंबर मापता है,
तारकों के पास जा कुछ कांपता है,
श्वास के हर कम्प मी कुछ याचना है|