भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"याचना / रघुवीर सहाय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=रघुबीर सहाय
+
|रचनाकार=रघुवीर सहाय
 
}}  
 
}}  
  

20:38, 2 जून 2008 का अवतरण


युक्ति के सारे नियंत्रण तोड़ डाले,
मुक्ति के कारण नियम सब छोड़ डाले,
अब तुम्हारे बंधनों की कामना है|

विरह यामिनी मी न पल भर नींद आयी,
क्यों मिलन के पात वह नैनों समायी,
एक क्षण में ही तो मिलन मी जागना है|

यह अभागा प्यार ही यदि है भुलाना,
तो विरह के वे कठिन क्षण भूल जाना,
हाय जिनका भूलना मुझको मना है |

मुक्त हो उच्छ्वास अंबर मापता है,
तारकों के पास जा कुछ कांपता है,
श्वास के हर कम्प मी कुछ याचना है|