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"उर्दू है मेरी जान, अभी सीख रहा हूँ / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर

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उर्दू है मेरी जान, अभी सीख रहा हूँ
 
तहज़ीब की पहचान, अभी सीख रहा हूँ
 
  
हसरत है कि गेसू-ए-ग़ज़ल मैं भी संवारूँ  
+
उर्दू है मिरी जान अभी सीख रहा हूँ
ये बह्र, ये अर्कान, अभी सीख रहा हूँ
+
तहज़ीब की पहचान अभी सीख रहा हूँ
 
+
होने की फ़रिश्ता नहीं ख़्वाहिश मुझे हरगिज़  
+
हसरत है कि गेसू-ए-ग़ज़ल मैं भी संवारूँ
बनना ही मैं इंसान, अभी सीख रहा हूँ
+
ये बह्र ये अरकान अभी सीख रहा हूँ
 
+
ख़ादिम हूँ ज़माने से इसी सिनफ़े ग़ज़ल का
+
होने की फरिश्ता नहीं ख़्वाहिश मुझे हरगिज़
पढ़-पढ़ के मैं दीवान, अभी सीख रहा हूँ
+
बनना ही मैं इंसान अभी सीख रहा हूँ
 
+
   
महफ़ूज़ न रख पाऊँगा दौलत के ख़ज़ीने  
+
आग़ाज़े महब्बत में ये ग़मज़े ये अदाएं
कहता है ये दरबान, अभी सीख रहा हूँ
+
 
+
आग़ाज़े महब्बत में ये आँखें ये अदाएं
+
 
ले लें न कहीं जान अभी सीख रहा हूँ
 
ले लें न कहीं जान अभी सीख रहा हूँ
 
+
क़ुर्बत तेरी जी का मेरे जंजाल न बन जाए
+
कुर्बत तिरी जी का मिरे जंजाल न बन जाए
हर शय से हूँ अंजान अभी सीख रहा हूँ  
+
हर शय से हूँ अंजान अभी सीख रहा हूँ
 
+
अदना सा सिपाही ये कहे बह्र-ए-अदब का
+
महफ़ूज़ न रख पाऊँगा दौलत के ख़ज़ीने
बन जाऊँगा सुलतान, अभी सीख रहा हूँ
+
कहता है ये दरबान अभी सीख रहा हूँ
 
+
मैं तो हूँ 'रक़ीब' आज भी इक तिफ्ल अदब में  
+
मैं तो हूँ 'रक़ीब' आज भी इक तिफ़्ल अदब में
पढ़-पढ़ के मैं दीवान, अभी सीख रहा हूँ
+
पढ़-पढ़ के मैं दीवान अभी सीख रहा हूँ
 
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15:57, 12 मई 2017 का अवतरण


उर्दू है मिरी जान अभी सीख रहा हूँ
तहज़ीब की पहचान अभी सीख रहा हूँ
 
हसरत है कि गेसू-ए-ग़ज़ल मैं भी संवारूँ
ये बह्र ये अरकान अभी सीख रहा हूँ
 
होने की फरिश्ता नहीं ख़्वाहिश मुझे हरगिज़
बनना ही मैं इंसान अभी सीख रहा हूँ
 
आग़ाज़े महब्बत में ये ग़मज़े ये अदाएं
ले लें न कहीं जान अभी सीख रहा हूँ
 
कुर्बत तिरी जी का मिरे जंजाल न बन जाए
हर शय से हूँ अंजान अभी सीख रहा हूँ
 
महफ़ूज़ न रख पाऊँगा दौलत के ख़ज़ीने
कहता है ये दरबान अभी सीख रहा हूँ
 
मैं तो हूँ 'रक़ीब' आज भी इक तिफ़्ल अदब में
पढ़-पढ़ के मैं दीवान अभी सीख रहा हूँ