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07:27, 17 मई 2017 के समय का अवतरण
जति–जति बर्साऊ
सहर–बस्ती
छाना–छानाभरि बमहरू
जति–जति पड्काऊ
छाती–छातीभरि बन्दुकहरू
या कुल्च दाब्रैदाब्रा हुनेगरी
बुटले शरीरभरि
आवाज कहिले मरेको छ र (?)
हामी त्यही अजर
मुक्त आवाज हौँ
जहाँ पनि, जहिले पनि
गुन्जिरहन्छौँ।