भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आंधी पीसै कुत्ता खावै / जनकराज पारीक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जनकराज पारीक |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
पंक्ति 18: पंक्ति 18:
 
सूळी ऊपर से ज सजालै।
 
सूळी ऊपर से ज सजालै।
 
नींद जिको कीं आधी आवै।
 
नींद जिको कीं आधी आवै।
</poem.
+
</poem>

20:07, 6 जून 2017 का अवतरण

आंधी पीसै कुत्ता खावै।
थारै घर सूं कांई जावै।
क्यूं आं साथै माथो मारै।
क्यूं बिरथा जी नै कळपावै।
तू दीयाळी रा गाए जा।
जे अै स्सै होळी रा गावै।
थारै तन पर अेक न तागो।
आं सगळां नै बागौ भावै।
सूळी ऊपर से ज सजालै।
नींद जिको कीं आधी आवै।