"भासा मायड़ बोलो रै ! / विनोद सारस्वत" के अवतरणों में अंतर
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कुजोगी हैवाई छोडो भासा मायड़ बोलो रै।
परसाभा रै भूतां नै दूधै रो तेज दिखाद्यो रै।।
भासा मायड़ बोलो रै, राजस्थानी बोलो रै।
छाछ लेवण नैं आई अे तो घर री धिराणी बिणगी रै।
रोटी-रूजगार खोस्या अे तो दफतर्यां में छागी रै।।
भासा मायड़ बोलो रै राजस्थानी बोलो रै।
छाती माथै मूंग दळती, संस्कृति रौ कर्यौ कबाड़ो रै।
यारो बाळण बाळौ रै थारै लांपौ लगाद्यो रै।।
भासा मायड़ बोलो रै राजस्थानी बोलो रै।
फरजी डिगर्यां ले आया धाड़वी, नौकर्यां कब्जाई रै।
यांरौ नकू भांगो रै, यांनै मारग बतावो रै।।
भासा मायड़ बोलो रै राजस्थानी बोलो रै
राजस्थानी नैं भख अे तो हुयगी राती-माती रै।
यांनै थोड़ी छांगो रै यांरी कड़तू तोड़ो रै।।
भासा मायड़ बोलो रै, राजस्थानी बोलो रै।
खोल उणींदी आंखड़ल्यां, देद्यो नाहर सी दकाळ रै।
धरती धूजै आभौ गरजै,धूजै भारत री सरकार रै।।
भासा मायड़ बोलो रै, राजस्थानी बोलो रै।
छांटा-छिड़का सूं नीं बूझैला आ मान्यता री आग रै।
छात्र-छात्रपती जागो रै,ओ लूंठा सेठां जागो रै।।
भासा मायड़ बोलो रै, राजस्थानी बोलो रैं।
ओ बीकां-जोधा मेड़तियां, सेखावतियां-सिसोदिया,जागो रै।
थै क्यूं लारै रेवौ गोदारा मीणां भील-पड़िहारां रै।।
भासा मायड़ बोलो रै, राजस्थानी बोलो रै।
जात-पांत रै टंटे नैं छोडो, अेकमेक भरो राजस्थानी हुंकारो रै।
आंटी नोळी काठी करो, माथा हठ लेय हू ज्यावौ त्यार रै।।
भासा मायड़ बोलो रै, राजस्थानी बोलो रै।
साठ बरसां सूं उडीकरैया कै भारत रा भाग्यविधाता तूठै रै।
सत री सगळी सींवा टूटगी आ तो सत लेवण नैं अड़गी रै।।
भासा मायड़ बोलो रै, राजस्थानी बोलो रै।
दूंनो-म्यांनौ आपां नैं क्यारौ, करणी रौ फळ भोगै रै।
इण री घोर खोलण सारू, बजावो राजस्थानी घूंसो रै।।
भासा मायड़ बोलो रै, राजस्थानी बोलो रै।