भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"घर सूं निकळतां / नरेश मेहन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश मेहन |अनुवादक= |संग्रह=थार-सप...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:24, 12 जून 2017 के समय का अवतरण
म्हैं
घर सूं निकळतां
हरमेस
आपरो सिर
धड़ सूं कर न्यारो
हथाळयां धर टुरूं।
ठाह नीं कद
बसड़ा-टरकड़ा
का फेर
किणी अमीर-औळाद री
कार तळै दब‘र
मर नीं जाऊं।
ठाह नीं कद
किणी अपघाती-आतंकवादी रै
बम्ब गोळां रो
सिकार हो जाऊं।
इणीज खातर म्हैं
आपरो सिर
टाळ’र राखूं।
घर बावड़ूं जद ई
सिर साम्भूं
घर में बड़ परो
आपरो सिर
धड़ माथै धरूं
अनै गिणूं
घर रा सगळा सिर
नीं जाणै किणीं रो सिर
किणीं री हथाळी माथै
नीं रै’ग्यो होवै।