भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"टूटग्या म्हारा खांदा / नरेश मेहन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश मेहन |अनुवादक= |संग्रह=थार-सप...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:27, 12 जून 2017 के समय का अवतरण
आपरा काम काढण
लोगड़ा बरतै
हरमेस
म्हारा ई खांदा।
म्हनै ठाह ई नीं पड़्यो
कदै ई इण रो
नीं कदै ई खांदा बोल्या
पण बरतीजता रैया।
एक दिन
हद पार होयगी
म्हारै खांदा बैठ
म्हारै ई गांव में
कोई लाय लगाग्यो
दंड पण मिल्यो
म्हारै खांदा नैं
खांदा दूख्या
रोया-कूक्या-बरड़ाया
पण सुणीं नीं कोई उण दिन
अणमणां होय
टूटग्या म्हारा खांदा।