भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पान झरै तो झरो / रचना शेखावत" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) |
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|अनुवादक= | |अनुवादक= | ||
|संग्रह=थार-सप्तक-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’ | |संग्रह=थार-सप्तक-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’ | ||
+ | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
{{KKCatRajasthaniRachna}} | {{KKCatRajasthaniRachna}} |
08:09, 14 जून 2017 के समय का अवतरण
पान झरै तो कांर्इ्र
झर जाओ भलांई
कदास आ नीं होवै
उमर खोलै चौपड़ी
काढै
कोई लियो-दियो।
जूना हिसाब खुल्यां
लाग जावै
ब्याज-पड़ब्याज
फेर भलांईं
उमर रैवै ठंड दांई
पान झरै तो झरो भलांईं।