भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"भूख / सतीश गोल्याण" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सतीश गोल्याण |अनुवादक= |संग्रह=था...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
08:32, 14 जून 2017 के समय का अवतरण
रोजीनै उगाड़ में
अखबार पढ़ीजै
रोजीनै ई अखबार में
कीं ना कीं अजूबो
समाचार होया करै, कै
आज सूरज री ऊर्जा सूं,
चालण आळी, कारण बणगी
आज अेक नूंवै भांत रो
कम्पयूटर आग्यो
पण बो माणस बठै सदा ई
अणबोल्यो बैठ्यो रैंवतो
बण कदैई नाड़ नी उठाई
जियां बीनै आं बातां सूं
कीं लैणो-दैणो नीं
आज फेरूं अेक अजूबो समाचार हो
कै विज्ञानिका,
अेक केपसूल बणायो है,
जिकां न लैयां पाछै
रोटी खाण री जरूरत कोनीं।
आ सुणता ईं बो ताचक्यो
अर ई समाचार न बण
अेकर फेरूं बंचवायो
अर, बिनै ईंया लागै हो
जियां आज,
काळती अर दीपूड़ो
रोटी खातर कोनी रोया !
बै सगळा धाप‘र सोया है।