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"ठेका शराब देसी / मनोज देपावत" के अवतरणों में अंतर

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08:47, 14 जून 2017 के समय का अवतरण

स्यान सूं सिर उठायां
गरब सूं सीनो ताण्यां
बैखोफ खड़्यो है !
म्हारै घर रै ठीक सामनै आळी गळी रै
आखरी नुक्कड़ माथै
बो अेकलो
भोत ही टेढै.मेढै हाथां सूं
कण ई
कच्ची ईंटां सूं चिण
सरकण्डा अर कच्ची माटी री छात
उण पर घाल दी
बांको.तिरछो सो गोबर लीप
नील रा धब्बा सूं भरयोड़ो
रंग सूं टेढो.बांको लिख दियो
ष्ठेका शराब देषीश्
दिन ऊगतां ई
मेरे जागण सूं पेलां
कुण जाणै कद खुलज्या है बींरा कपाट
मिन्दरांए धर्मस्थलां में जिकी लेण
महीनै या साल में
अेकर देखूं हूं
वा देखूं हूं रोज सिंझ्या उण रै आगै
हर मौसमए हर रुत में
हर घमण्डीज्योड़ो सिर
देख्यो है बठै ज्यार झुकै मांगतो
हर जात.पांतए धरम मजहब रा लोग
झुकै बींरै आगै ज्याष्र
म्हारै गांव रै साम्प्रदायिक सद्भाव रो
अखण्ड इस्थान
दादोजी कैंवताण्ण्ण्
जाणै कित्ती हेल्यां.कोठ्यां
मैश्ल रजवाड़ाए सेठ.साहूकार
जागीरां.बोपारए धंधा.घर
रूळग्या इण नै सजांवता.सजांवता
पण ओ आज भी बिंया ई
कच्चोए टूटयो.फूट्यो
बिखरयोए खपरैळए रेत सूं भरयोड़ो
खड़्यो है शाष्वत चिरन्तन
ष्ठेका शराब देषीश्
कुण जाणै कित्ता लोग
कित्ती संस्थावांए हाथ.पग मारया
इनै हटावण रै वास्तै
आंदोलनए हड़तालए दंगा हुया
पण कांई ठाए कांई अणदेखी ताकत है इण खन्नै
जकी इण नै आज तक जिंदा राखै है
बेखौफ.बेपरवाह
और ओ आज भी खड़्यो है
अस्तित्व बणायांए सीनो ताण्यां.सिर उठायां
ष्ठेका शराब देषीश्
ना ओ बंद हुवै ना सरमिंदा
चाहे कित्ती मोटी मुसीबत आ ज्यावै
सगळी दुनियां रो मजाक उडावंतो
खड़्यो रैवै खम ठोक
कित्ती राष्ट्र अर अन्तराष्ट्ररी चर्चा हुवै
इण मेंए दिन ढळयां पछै
ना कोई शोर ना कोई रोळो
ना कदी भंग हुवै ईं री कार्यवाही
संसद री तरयां
जदी तो हूं सोचूं
बिल्कुल इस्यो ही होणो चाहिजै
हर मैकमै नैए निरपेख.क्रियाषील
अडिग अर सहयोगी
अर लेवणो चाईजै सबक
इण सूं देष री पार्लियामेण्ट ने
सांची कैवूं ष्मनूजश्
थे कदी दो.च्यार घंटा बैठष्र देखो
सिंझ्या उण में बैठ बेचण आळो रै खन्नै
सोफी रैष्वै अर
आज भी आपनै लागैला
कै भारत म्हारो
आज भी सोने री चिड़ी है