भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आनंद मिल ही जाएगा वो पास ही तो है / आनंद कुमार द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= आनंद कुमार द्विवेदी }} {{KKCatGhazal}} <poem> ख्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

04:18, 17 जून 2017 का अवतरण

ख्वाबों सा टूटकर कभी ढहकर भी देखिये
जीवन में धूपछाँव को सहकर भी देखिये

माना कि प्रेम जानता है मौन की भाषा
अपने लबों से एकदिन कहकर भी देखिये

धारा के साथ-साथ तो बहता है सब जहाँ
सूखी नदी के साथ में बहकर भी देखिये

अपना ही कहा था कभी इस नामुराद को
अपनों की बाँह को कभी गहकर भी देखिये

जन्नत से देखते हो दुनिया के तमाशे को
कुछ वक्त मेरे साथ में रहकर भी देखिये

‘आनंद’ मिल भी जाएगा वो पास ही तो है
अश्कों की तरह आँख से बहकर भी देखिये