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"डर लग रहा है दोस्तों का प्यार देख कर / आनंद कुमार द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर
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10:37, 17 जून 2017 के समय का अवतरण
इंसान को हर सिम्त से लाचार देखकर
हैराँ हूँ आज वक्त की रफ़्तार देखकर
माँ रो पड़ी ये सोचकर जाए वो किस तरफ
आँगन के बीच आ गयी दीवार देखकर
माली के हाथ में नहीं महफूज़ अब चमन
डाकू भले हैं, मुल्क की सरकार देखकर
दुनिया के सितम का तो खैर कोई ग़म नहीं
डर लग रहा है दोस्तों का प्यार देखकर
‘आनंद’ शाम तक तो बड़ा खुशमिजाज़ था
सहमा हुआ है आज का अख़बार देखकर