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"इक जिस्म रह गया हूँ महज़ दिल नहीं रहा / आनंद कुमार द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर
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16:27, 17 जून 2017 के समय का अवतरण
अब मैं किसी के प्यार के काबिल नहीं रहा,
इक जिस्म रह गया हूँ महज, दिल नहीं रहा |
कैसे गुमान होता मुझे अपने क़त्ल का,
जब मैं किसी के ख़्वाब का क़ातिल नही रहा |
जब से किसी ने मुझको तराजू पे रख़ दिया,
अय जिंदगी, मैं तेरे मुक़ाबिल नही रहा |
मँझधार ही नसीब है, या पार लगूंगा ?
हद्दे निगाह तक कोई साहिल नही रहा |
दुनिया के तकाज़े हैं, खुदगर्ज़ हुआ जाये,
बस एक यही मसला मुश्किल नही रहा |
‘आनंद’ मिट गया औ भनक भी नही लगी,
पहले तो मैं इतना कभी गाफ़िल नहीं रहा |