भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मेरी बस्ती से अंधेरों भागो / आनंद कुमार द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:17, 17 जून 2017 के समय का अवतरण

खामखाँ मुझको सताने आये,
फिर से कुछ ख्वाब सुहाने आये

मेरी बस्ती से अंधेरों.. भागो,
वो नई शम्मा जलाने आये

जिनको सदियाँ लगी भुलाने में,
याद वो किस्से पुराने आये

वो जरा रूठ क्या गया मुझसे,
गैर फिर उसको मनाने आये

मेरी दीवानगी..सुनी होगी,
लोग अफसोश जताने आये

मैं तो जूते पहन के सोता हूँ,
क्या पता कब वो बुलाने आये

उसके हिस्से में जन्नतें आयीं
मेरे हिस्से में जमाने आये

यारों ‘आनंद’ से मिलो तो कभी,
आजकल उसके जमाने आये