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"मुझको वादे कुछ मिले थे मैंने पाया और कुछ / आनंद कुमार द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर

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21:37, 17 जून 2017 के समय का अवतरण

अपने स्कूलों से तो, पढ़कर मैं आया और कुछ ,
जिंदगी जब भी मिली, उसने सिखाया और कुछ!

शख्त असमंजश में हूँ बच्चों को क्या तालीम दूँ ,
साथ लेकर कुछ चला था, काम आया और कुछ !

आज फिर मायूस होकर, उसकी महफ़िल से उठा,
मुझको मेरी बेबसी ने , फिर रुलाया और कुछ  !

इसको भोलापन कहूं या, उसकी होशियारी कहूं?
मैंने पूछा और कुछ, उसने बताया और कुछ  !

सब्र का फल हर समय मीठा ही हो, मुमकिन नहीं,
मुझको वादे कुछ मिले थे, मैंने पाया और कुछ !

आजकल ‘आनंद’ के, नग्मों की रंगत और है ,
शायद उसका दिल किसी ने फिर दुखाया और कुछ!