भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मंगतो / निर्मल कुमार शर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निर्मल कुमार शर्मा |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:50, 25 जून 2017 के समय का अवतरण
धंसियोडी आंख्यां, पिचक्यो पेट
पगां उबाणा, तपती जेठ
गाबो नीं तन पे
कीं भाव नीं मन में
न हंसे कदी
ना रोवतां देख्यो
ना जागै कदी
ना सोवतां देख्यो
क्या खावै अर क्या पीवै है
कुण जाणै कइयां जीवै है
रोटी देस-धरम हैे इण रो
रोटी है भगवान
कह मंगतो थे भल बतळावो
यो भी है इन्सान