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"दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-16 / दिनेश बाबा" के अवतरणों में अंतर

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113
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121
बच्चा, बूढ़ा, नवयुवक, आ नारी स्मार्ट
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बंगाली के जिन्दगी, नित्यगीत-संगीत
खूब निभाबै छै सभे, अपनों अपनों पार्ट
+
खान-पान पारंपरिक, भाषा सें अति प्रीत
  
114
+
122
एक गुना बिल्डिंग बढ़ै, चारगुना इंसान
+
स्वर्णाभूषण के चलन, चूड़ी, कंगन हार
महानगर विस्तार में, दोनो एक समान
+
संुदर लागै लेॅ करै, हर महिला श्रृंगार
  
115
+
123
अनुशासित छै लोग सब, नैं  कचकच नैं मार
+
मर्द पराया केॅ रखै, जे मन में संजोय
रिक्शा लेली भी यहाँ, अक्सर लगै कतार
+
कहियै भले विवाहिता, पतिव्रता नै होय
  
116
+
124
कहीं खड़ा तों होय जा, क्यू के लगै कतार
+
नारी के सौंदर्य छै, निर्मल चरित, सुभाव
जहाँ समय के माँग छै, जिनगी में रफतार
+
दुश्चरित्रा नारी छिकै, कार्बंकल रं घाव
  
117
+
125
जनसंख्या देखो यहाँ, भेलै जना पहाड़
+
नारी उज्वल चरित के सगरो पूजल जाय
रुकतै आबे कहाँ पर, इंसानो के बाढ़
+
हुनकर श्रद्धा-प्रेम सें, मोॅन कभी न अघाय
  
118
+
126
जनसंख्या विस्फोट में, बढ़लो गेलै भीड़
+
बेटी छिकै निमुहां धन, जाय पराया घोॅर
घोॅर बढ़ै रोजे मतर, कहाँ पुरै छै नीड़
+
बापें खोजै छै तहीं, निक्को नाखी बोॅर
  
119
+
127
महानगर में घोॅर नैं, मिलथौं केवल फ्लैट
+
बात-बात पर नैं एना, रहियो गाल फुलाय
बोली छै खिचड़ी यहाँ, बेसी दिस या दैट
+
बेटी जौं ऐन्हों करेॅ, होय छै हिनस्ताय
  
120
+
128
पानी जुगना धन बहै, जिनगी छै उन्मुक्त
+
‘बाबा’ जौं बीबी राखियै, जस टाटा स्टील
यहाँ तेॅ स्वेच्छाचारिता, ही लागै उपयुक्त
+
काम-काज व्यवहार में, लगथौं जना वकील
 
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18:19, 25 जून 2017 के समय का अवतरण

121
बंगाली के जिन्दगी, नित्यगीत-संगीत
खान-पान पारंपरिक, भाषा सें अति प्रीत

122
स्वर्णाभूषण के चलन, चूड़ी, कंगन हार
संुदर लागै लेॅ करै, हर महिला श्रृंगार

123
मर्द पराया केॅ रखै, जे मन में संजोय
कहियै भले विवाहिता, पतिव्रता नै होय

124
नारी के सौंदर्य छै, निर्मल चरित, सुभाव
दुश्चरित्रा नारी छिकै, कार्बंकल रं घाव

125
नारी उज्वल चरित के सगरो पूजल जाय
हुनकर श्रद्धा-प्रेम सें, मोॅन कभी न अघाय

126
बेटी छिकै निमुहां धन, जाय पराया घोॅर
बापें खोजै छै तहीं, निक्को नाखी बोॅर

127
बात-बात पर नैं एना, रहियो गाल फुलाय
बेटी जौं ऐन्हों करेॅ, होय छै हिनस्ताय

128
‘बाबा’ जौं बीबी राखियै, जस टाटा स्टील
काम-काज व्यवहार में, लगथौं जना वकील