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माँ / नीलेश रघुवंशी

4 bytes removed, 10:18, 26 जून 2017
<poem>
माँ बेसाख़्ता आ जाती है तेरी याद
दिखती है जब कोई औरत ।औरत।
घबराई हुई-सी प्लेटफॉम पर
आँचल से ढँके अपना सर
माँ मुझे तेरी याद आ जाती है ।है।
मेरी माँ की तरह
उम्र के इस पड़ाव पर भी घबराहट है
क्यों, आख़िर क्यों ?
क्या पक्षियों का कलरव
झूठमूठ ही बहलाता है हमें ?
</poem>
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