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}}{{KKAnthologyChand}}
{{KKCatKavita}}
:{{KKAnthologyMaa}}<poem>अनायास आज भी यह मन- पंछी:उड़कर वहाँ पहुँच जाता है:जहाँ कभी इच्छा और समाधान :दोनो का अद्भुत आलाप हुआ था :माँ के आँचल को पकड़कर:आँगन बीच खड़ी कर:आसमां की ओर उँगली दिखाकर:चाँद को पाने की जिद्द किया था :तब माँ ने बहुत समझाया था:गोद में उठाकर, सीने से लगाकर :बहलाने का अथक प्रयास किया था:पर शिशुतावश, मैं माननेवाला कहाँ था :तब माँ पानी से भरे थाली में:आँगन बीच मेरे लिए:आसमां से चाँद उतार लाई थी:और मुझे अपने आलिंगन में भरकर:माया की प्रतिमा-सी, असीमता का परिचय दी थी :चाँद को पाकर मैं बहुत खुश हुआ था:सोचता था, मेरी माँ कितनी बलशाली है:इतनी बलशाली तो दिन- रात, बक- बक:करने वाली, दादी माँ भी नहीं है :वरना चाँद को पकड़कर, दादी माँ नहीं दी होती:पानी और थाली, घर में पहले भी थी:जब की चाँद को पाने की जिद्द:मैंने उनसे भी कई बार किया था</poem>
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