"माँ-बेटी / सुभाष नीरव" के अवतरणों में अंतर
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+ | हो आती है मायके। | ||
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− | + | माँ को करती है तैयार बेटी | |
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+ | माँ के लिए एक आइना। | ||
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− | + | और खुद अपने हाथों से सिखाती है | |
− | + | साड़ी को बांधना, | |
− | + | चुन्नटों को ठीक करना | |
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− | + | जब जाना होता है बेटी को | |
+ | कालेज के ऐनुअल-फंक्शन में। | ||
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− | + | जाने क्या गिट-पिट करती रहती हैं दोनों | |
− | + | दो हम-उम्र और अंतरंग सहेलियों की तरह | |
− | + | राम जाने!</poem> | |
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− | राम जाने ! | + |
18:13, 26 जून 2017 के समय का अवतरण
बेटी के पाँव में आने लगी है
माँ की चप्पल
बेटी जवान हो रही है।
माँ को आ जाता है अब
बेटी का सूट
बेटी सचमुच जवान हो गई है।
माँ -बेटी आपस में अब
कर लेती हैं अदला-बदली
अपनी-अपनी चीजों की।
जब मन होता है
बेटी, माँ के नए सैंडिल पहन
चली जाती है सहेली के बर्थ-डे पर
और माँ –
बेटी का नया सिला सूट पहन कर
हो आती है मायके।
कभी-कभी दोनों में
‘तू-तकरार’ भी होती है
चीजों को लेकर
जब एक ही समय दोनों को पड़ती है
एक-सी ही चीजों की ज़रूरत।
माँ को करती है तैयार बेटी
शादी-पार्टी के लिए ऐसे
जैसे कर रही हो खुद को तैयार।
हेयर-क्लिप हो या नेल-पालिश
लिपिस्टिक हो या कपड़ों के रंग
हेयर-स्टाइल हो या बिंदी का आकार
इन सब पर देती है बेटी खुल कर
माँ को अपनी राय
और बन जाती है ऐसे क्षणों में
माँ के लिए एक आइना।
माँ भी निकाल देती है बेटी के लिए
अपनी सबसे प्यारी संजो कर रखी साड़ी
और खुद अपने हाथों से सिखाती है
साड़ी को बांधना,
चुन्नटों को ठीक करना
और पल्लू को संवारना
जब जाना होता है बेटी को
कालेज के ऐनुअल-फंक्शन में।
अकेले में बैठ कर अब
जाने क्या गिट-पिट करती रहती हैं दोनों
दो हम-उम्र और अंतरंग सहेलियों की तरह
राम जाने!