भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"माँ-बेटी / सुभाष नीरव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = सुभाष नीरव }} बेटी के पांव में आने लगी है<br> माँ की चप्प...)
 
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार = सुभाष नीरव  
 
|रचनाकार = सुभाष नीरव  
}}
+
}}{{KKCatKavita}}
 +
{{KKAnthologyMaa}}
 +
<poem>
 +
बेटी के पाँव में आने लगी है
 +
माँ की चप्पल
 +
बेटी जवान हो रही है।
  
बेटी के पांव में आने लगी है<br>
+
माँ को आ जाता है अब
माँ की चप्पल<br>
+
बेटी का सूट
बेटी जवान हो रही है।<br><br>
+
बेटी सचमुच जवान हो गई है।
  
माँ को आ जाता है अब<br>
+
माँ -बेटी आपस में अब
बेटी का सूट<br>
+
कर लेती हैं अदला-बदली
बेटी सचमुच जवान हो गई है।<br><br>
+
अपनी-अपनी चीजों की।
  
माँ -बेटी आपस में अब<br>
+
जब मन होता है
कर लेती हैं अदला-बदली<br>
+
बेटी, माँ के नए सैंडिल पहन
अपनी-अपनी चीजों की।<br><br>
+
चली जाती है सहेली के बर्थ-डे पर
 +
और माँ –
 +
बेटी का नया सिला सूट पहन कर
 +
हो आती है मायके।
  
जब मन होता है<br>
+
कभी-कभी दोनों में
बेटी, माँ के नए सैंडिल पहन<br>
+
‘तू-तकरार’ भी होती है
चली जाती है सहेली के बर्थ-डे पर<br>
+
चीजों को लेकर
और माँ –<br>
+
जब एक ही समय दोनों को पड़ती है
बेटी का नया सिला सूट पहन कर<br>
+
एक-सी ही चीजों की ज़रूरत।
हो आती है मायके।<br><br>
+
  
कभी-कभी दोनों में<br>
+
माँ को करती है तैयार बेटी
‘तू-तकरार’ भी होती है<br>
+
शादी-पार्टी के लिए ऐसे
चीजों को लेकर<br>
+
जैसे कर रही हो खुद को तैयार।
जब एक ही समय दोनों को पड़ती है<br>
+
एक-सी ही चीजों की ज़रूरत।<br><br>
+
  
माँ को करती है तैयार बेटी<br>
+
हेयर-क्लिप हो या नेल-पालिश
शादी-पार्टी के लिए ऐसे<br>
+
लिपिस्टिक हो या कपड़ों के रंग
जैसे कर रही हो खुद को तैयार।<br><br>
+
हेयर-स्टाइल हो या बिंदी का आकार
 +
इन सब पर देती है बेटी खुल कर
 +
माँ को अपनी राय
 +
और बन जाती है ऐसे क्षणों में
 +
माँ के लिए एक आइना।
  
हेयर-क्लिप हो या नेल-पालिश<br>
+
माँ भी निकाल देती है बेटी के लिए
लिपिस्टिक हो या कपड़ों के रंग<br>
+
अपनी सबसे प्यारी संजो कर रखी साड़ी
हेयर-स्टाइल हो या बिंदी का आकार<br>
+
और खुद अपने हाथों से सिखाती है
इन सब पर देती है बेटी खुल कर<br>
+
साड़ी को बांधना,
माँ को अपनी राय<br>
+
चुन्नटों को ठीक करना
और बन जाती है ऐसे क्षणों में<br>
+
और पल्लू को संवारना
माँ के लिए एक आइना।<br><br>
+
जब जाना होता है बेटी को
 +
कालेज के ऐनुअल-फंक्शन में।
  
माँ भी निकाल देती है बेटी के लिए<br>
+
अकेले में बैठ कर अब
अपनी सबसे प्यारी संजो कर रखी साड़ी<br>
+
जाने क्या गिट-पिट करती रहती हैं दोनों
और खुद अपने हाथों से सिखाती है<br>
+
दो हम-उम्र और अंतरंग सहेलियों की तरह
साड़ी को बांधना,<br>
+
राम जाने!</poem>
चुन्नटों को ठीक करना<br>
+
और पल्लू को संवारना<br>
+
जब जाना होता है बेटी को<br>
+
कालेज के ऐनुअल-फंक्शन में।<br><br>
+
 
+
अकेले में बैठ कर अब<br>
+
जाने क्या गिट-पिट करती रहती हैं दोनों<br>
+
दो हम-उम्र और अंतरंग सहेलियों की तरह<br>
+
राम जाने !
+

18:13, 26 जून 2017 के समय का अवतरण

बेटी के पाँव में आने लगी है
माँ की चप्पल
बेटी जवान हो रही है।

माँ को आ जाता है अब
बेटी का सूट
बेटी सचमुच जवान हो गई है।

माँ -बेटी आपस में अब
कर लेती हैं अदला-बदली
अपनी-अपनी चीजों की।

जब मन होता है
बेटी, माँ के नए सैंडिल पहन
चली जाती है सहेली के बर्थ-डे पर
और माँ –
बेटी का नया सिला सूट पहन कर
हो आती है मायके।

कभी-कभी दोनों में
‘तू-तकरार’ भी होती है
चीजों को लेकर
जब एक ही समय दोनों को पड़ती है
एक-सी ही चीजों की ज़रूरत।

माँ को करती है तैयार बेटी
शादी-पार्टी के लिए ऐसे
जैसे कर रही हो खुद को तैयार।

हेयर-क्लिप हो या नेल-पालिश
लिपिस्टिक हो या कपड़ों के रंग
हेयर-स्टाइल हो या बिंदी का आकार
इन सब पर देती है बेटी खुल कर
माँ को अपनी राय
और बन जाती है ऐसे क्षणों में
माँ के लिए एक आइना।

माँ भी निकाल देती है बेटी के लिए
अपनी सबसे प्यारी संजो कर रखी साड़ी
और खुद अपने हाथों से सिखाती है
साड़ी को बांधना,
चुन्नटों को ठीक करना
और पल्लू को संवारना
जब जाना होता है बेटी को
कालेज के ऐनुअल-फंक्शन में।

अकेले में बैठ कर अब
जाने क्या गिट-पिट करती रहती हैं दोनों
दो हम-उम्र और अंतरंग सहेलियों की तरह
राम जाने!