भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
150 bytes removed,
12:43, 26 जून 2017
{{KKRachna
|रचनाकार = सुभाष नीरव
}}{{KKCatKavita}}{{KKAnthologyMaa}}<poem>बेटी के पाँव में आने लगी हैमाँ की चप्पलबेटी जवान हो रही है।
बेटी के पांव में आने लगी माँ को आ जाता है<br>अबमाँ की चप्पल<br>बेटी का सूटबेटी सचमुच जवान हो रही गई है।<br><br>
माँ को आ जाता है -बेटी आपस में अब<br>बेटी का सूट<br>कर लेती हैं अदला-बदलीबेटी सचमुच जवान हो गई है।<br><br>अपनी-अपनी चीजों की।
जब मन होता हैबेटी, माँ के नए सैंडिल पहनचली जाती है सहेली के बर्थ-बेटी आपस में अब<br>डे परऔर माँ –बेटी का नया सिला सूट पहन कर लेती हैं अदला-बदली<br>अपनी-अपनी चीजों की।<br><br>हो आती है मायके।
जब मन होता है<br>कभी-कभी दोनों मेंबेटी, माँ के नए सैंडिल पहन<br>चली जाती है सहेली के बर्थ‘तू-डे पर<br>तकरार’ भी होती हैऔर माँ –<br>चीजों को लेकरबेटी का नया सिला सूट पहन कर<br>हो आती जब एक ही समय दोनों को पड़ती है मायके।<br><br>एक-सी ही चीजों की ज़रूरत।
कभी-कभी दोनों में<br>माँ को करती है तैयार बेटी‘तूशादी-तकरार’ भी होती है<br>पार्टी के लिए ऐसेचीजों जैसे कर रही हो खुद को लेकर<br>जब एक ही समय दोनों को पड़ती है<br>एक-सी ही चीजों की ज़रूरत।<br><br>तैयार।
हेयर-क्लिप हो या नेल-पालिशलिपिस्टिक हो या कपड़ों के रंगहेयर-स्टाइल हो या बिंदी का आकारइन सब पर देती है बेटी खुल करमाँ को करती अपनी रायऔर बन जाती है तैयार बेटी<br>ऐसे क्षणों मेंशादी-पार्टी माँ के लिए ऐसे<br>जैसे कर रही हो खुद को तैयार।<br><br>एक आइना।
हेयर-क्लिप हो या नेल-पालिश<br>लिपिस्टिक हो या कपड़ों के रंग<br>हेयर-स्टाइल हो या बिंदी का आकार<br>इन सब पर माँ भी निकाल देती है बेटी खुल के लिएअपनी सबसे प्यारी संजो कर<br>रखी साड़ीमाँ और खुद अपने हाथों से सिखाती हैसाड़ी को अपनी राय<br>बांधना,चुन्नटों को ठीक करनाऔर बन जाती पल्लू को संवारनाजब जाना होता है ऐसे क्षणों में<br>बेटी कोमाँ कालेज के लिए एक आइना।<br><br>ऐनुअल-फंक्शन में।
माँ भी निकाल देती है बेटी के लिए<br>अपनी सबसे प्यारी संजो कर रखी साड़ी<br>और खुद अपने हाथों से सिखाती है<br>साड़ी को बांधना,<br>चुन्नटों को ठीक करना<br>और पल्लू को संवारना<br>जब जाना होता है बेटी को<br>कालेज के ऐनुअल-फंक्शन में।<br><br> अकेले में बैठ कर अब<br>जाने क्या गिट-पिट करती रहती हैं दोनों<br>दो हम-उम्र और अंतरंग सहेलियों की तरह<br>राम जाने !</poem>