भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"एक फैसलो / सिया चौधरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सिया चौधरी |अनुवादक= |संग्रह=थार-स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:16, 27 जून 2017 के समय का अवतरण

ढळती-ढळती सी सींझ्या
एक बुझती-बुझती छिंयां
ऊभी ही अमूझी-अमूझी
उळझी-उळझी विचारां में
जियां बायरै सूं लड़ता
उळझ्योड़ा हा केस-नीरस
कई-कई दिनां सूं जिण नै
सिणगारया ई कोनीं
चौखट सूं माथो टिका
करणों चावै ई कोई फैसलो
ढूंढै ही कोई पाळी री आळी
थळकण रै एक ठौड़ हो
दिनान्थयां रो सो ई काम
राबड़ी रांधणों
बासण मांजणां
दूजी ठौड़ां खुद रै होवण रो
गुमान-चाव-थ्यावस-इकलग
अमूझणीं सी होवण लागी
कठीनै मेलूं पग म्हारो
सोच री पण सींव ही
जकी एक‘र बधै
एक‘र सुकड़ै।

छेकड़
सांवट आपरी सगळी ऊरमा
बांध हिम्मत
बधायो पग
डूबतै सै सुरजी खांनी
इण सूं पैली कै टिकांवती बो पग
आजादी री जमीन माथै
सुणी किलकारी बेटी री
अधबीच में ई थमग्यो
बो पड़यो घर रै भीतर
भाज‘र लाडकंवरी नै गोद्यां लेई
भारी पड़ग्यो सगळै फैसलां माथै
एक घरदारणी रै तो घर
अर गिरहस्थी रो भार...।