भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मनुष्यों की तरह / नरेश सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश सक्सेना |संग्रह=समुद्र पर हो रही है बारिश / नरेश स...)
(कोई अंतर नहीं)

23:55, 9 जून 2008 का अवतरण

कोई-कोई वृक्ष

बिल्कुल मनुष्यों की तरह होते हैं


वे न फल देते हैं न छाया

एक हरे सम्मोहन से खींचते हैं

और पहुँच में आते ही

दबोच कर सारा ख़ून चूस लेते हैं


उस वक़्त बिल्कुल मनुष्यों की तरह

हो जाता है सारा जंगल

एक भी वृक्ष आगे नहीं बढ़ता।